मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

भार- 30…….

धोखा हुआ उस अभिमन्यु से कौरव कायर विकराली

साध सका न ब्यहु रचना को पांडव पुत्र था बलशाली

अभी उमर ही क्या थी उसकी धीर बीर रणधीर चला

मातु गर्भ अधसुनी कहन अवसर तकता पल प्रतिपाली॥

निडर निपुड़ था शस्त्र उठाकर हर बेड़े को पार किया

वापस की थी राह अजनवी तब रिश्तों ने दगा दिया

घायल हुआ निहत्था बालक रथ के पहिये हाथ लगे

हाहाकार मचाकर बीरा शरण बीरगति चूम लिया॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ