गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तल्खियाँ दिल से भुलाते तो चमन गुलजार होता ।
गीत मेरे गूँजते मनमीत का गर प्यार होता ।।

वो खुदा फरखुंद उल्फ़त की इबादत से नवाजे ।
पर चलन कैसा अजूबा रूह का व्यापार होता ।।

चाँद तारे आसमां क्या पा सकोगे ख्वाब में तुम।
मिल्कियत का यूँ नहीं कोई यहाँ हकदार होता ।।

वेद की सारी ऋचाएं आयतें बनकर खिली हैं ।
राज ये सब जान जाते प्यार ही बस प्यार होता ।।

हो गया मजलूम मुफलिस आदमी कुछ इस कदर क्यूँ।
आदमीयत जाग जाती सब कहीं सत्कार होता ।।

तुम कुहासों पर यकीं करते रहे कर बेवफाई ।
शम्स का भी है वजूदे जिन्दगी एतबार होता ।।

कह रही मुमताज़ शीरी राधिका मीरा सदा से ।
हर ‘अधर’ से ये वफा-ए-इश्क का इजहार होता ।।

शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’

फरखुंद उल्फ़त = पवित्र प्रेम
शम्स = सूरज

 

शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'

पिता- श्री सूर्य प्रसाद शुक्ल (अवकाश प्राप्त मुख्य विकास अधिकारी) पति- श्री विनीत मिश्रा (ग्राम विकास अधिकारी) जन्म तिथि- 09.10.1977 शिक्षा- एम.ए., बीएड अभिरुचि- काव्य, लेखन, चित्रकला प्रकाशित कृतियां- बोल अधर के (1998), बूँदें ओस की (2002) सम्प्रति- अनेक समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लेख, कहानी और कवितायें प्रकाशित। सम्पर्क सूत्र- 547, महाराज नगर, जिला- लखीमपुर खीरी (उ.प्र.) पिन 262701 सचल दूरभाष- 9305305077, 7890572677 ईमेल- vshubhashukla@gmail.com