कविता

जाने क्यों

जाने क्यों
जब भी तुम्हे रोते हुए देखता हूँ
सोचता हूँ
खुद को कोई ऐसी सज़ा दूं
जो ख़त्म कर दें तुम्हारी उलझने
जब भी
तुम्हे पलकें भिगोते हुए देखता हूँ

हाँ जब भी
तुम्हे रोते हुए देखता हूँ
सोये अरमानो संग सोतेे हुए देखता हूँ
सोचता हूँ
मार लूं अपनी सारी तमन्नाएँ
कर दूं तुम्हारे दिव्य स्वप्न पूरे
जब भी
अध खुली आँखों से
अधूरे सपनों में खोते हुए देखता हूँ
मत सोचना तुम अकेली हो
खुद ही खुद की सहेली हो
मैं भी भिगो ही देता हूँ
पलकें अपनी भी
जब भी
तुम्हे रोते हुए देखता हूँ
तुम्हे रोते हुए देखता हूँ

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com