कविता

आसूँ

ये जो आसूं हैं न, बड़े अजीब होते हैं,
जब होता है दर्द तब भी रोते हैं।
जब होती है ख़ुशी बहुत, ये तब भी बहते हैं,
ये जो आसूं हैं न बड़े अजीब होते हैं।

ये तब भी बरसते हैं जब खेतों में बादल धोखा दे जाते हैं,
और बरसात की बूँदों की आड़ में खुद को छिपा जाते हैं,
झूलकर किसी पेड़ की डाली से,
कर्ज केवल इन आसुओं का पलकों में छोड़ जाते हैं,
ये जो आसूं हैं न बड़े अजीब होते हैं।

समझ नहीं आता कि बेटी की बिदाई में,
इन आँखों की गहराई में, जो भर-भर नयन से आते हैं,
जाने कौन से आसूं ये कहलाते हैं,
ये जो आसूं हैं न कई सवाल छोड़ जाते हैं,

मैं रोता हूँ ये तब भी आते हैं,
मैं जब हँसता हूँ ये तब भी पलकें भीगा जाते हैं,
ये जो आसूं हैं न बड़े अजीब होते हैं।

बन नीर ये नदियों का, व्यथा अपनी सुनाते हैं,
सूखे ताल के गाल पर,
कुछ बूंदे ही रह जाते हैं,
ये जो आसूं हैं न बड़े अजीब होते हैं।

ये कफन शहीद का भी भिगोते हैं,
ये सूखे खेतों में भी बरस जाते हैं,
पता नहीं ये कैसा दोगलापन निभाते हैं,
क्यों ये सिर्फ हमेशा गरीब के ही हिस्से में आते हैं,
ये जो आसूँ हैं न बड़े अजीब होते हैं।

रवि किशोर

रवि शुक्ला

रवि रमाशंकर शुक्ल ‘प्रहृष्ट’ शिक्षा: बी.ए वसंतराव नाईक शासकीय कला व समाज विज्ञानं संस्था, नागपुर एम.ए. (हिंदी) स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्व विद्यालय, नागपुर बी.एड. जगत प्रकाश अध्यापक(बी.एड.) महाविद्यालय, नागपुर सम्प्रति: हिंदी अध्यापन कार्य दिल्ली पब्लिक स्कूल, नासिक(महाराष्ट्र) पूर्व हिंदी अध्यापक - सारस्वत पब्लिक स्कूल & कनिष्ठ महाविद्यालय, सावनेर, नागपुर पूर्व अंशदायी व्याख्याता – राजकुमार केवलरमानी कन्या महाविद्यालय, नागपुर सम्मान: डॉ.बी.आर.अम्बेडकर राष्ट्रीय सम्मान पदक(२०१३), नई दिल्ली. ज्योतिबा फुले शिक्षक सम्मान(२०१५), नई दिल्ली. पुरस्कार: उत्कृष्ट राष्ट्रीय बाल नाट्य लेखन और दिग्दर्शन, पुरस्कार,राउरकेला, उड़ीसा. राष्ट्रीय, राज्य, जिल्हा व शहर स्तर पर वाद-विवाद, परिसंवाद व वक्तृत्व स्पर्धा में ५०० से अधिक पुरस्कार. पत्राचार: रवि शुक्ल c/o श्री नरेन्द्र पांडेय पता रखना है अन्दर का ही भ्रमणध्वनि: 8446036580