गजल 212,212,212,212
कोई इल्जाम हमपे लगाना नही।
बोलती सच मैं करती बहाना नहीं
आ भी जाते समय पर मगर क्या करें,
बन्द घड़ियों का कोई ठिकाना नही।
द्वार बापू खड़े माँ खड़ी आँगना,
आँख से आँख को तुम लड़ाना नही।
जैसे तैसे निकल के अभी आये हैं,
अब लगा लो गले आजमाना नही।
प्यार की राह *अनहद* बड़ी वक्र है
आज से पहले तो हमने जाना नही।
— अनहद गुंजन गीतिका