गीतिका/ग़ज़ल

गजल 212,212,212,212

कोई इल्जाम हमपे लगाना नही।
बोलती सच मैं करती बहाना नहीं

आ भी जाते समय पर मगर क्या करें,
बन्द घड़ियों का कोई ठिकाना नही।

द्वार बापू खड़े माँ खड़ी आँगना,
आँख से आँख को तुम लड़ाना नही।

जैसे तैसे निकल के अभी आये हैं,
अब लगा लो गले आजमाना नही।

प्यार की राह *अनहद* बड़ी वक्र है
आज से पहले तो हमने जाना नही।

अनहद गुंजन गीतिका

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*