कविता

***बुरा वक़्त ***

सुनो ना….

बुरा वक़्त

जैसे …..
फ़टे जूते से
निकली कील
पैरों में चुभती है,

जैसे ….
हर मोड़ पर
खड़े कर्ज़दाता से
बचने की नाकाम सी
कोशिश,

जैसे ….
आधी रात को
फ़ोन की घंटी
बजने पर
बुरी ख़बर की दस्तक,

जैसे
खाली जेब में
मुह चिढ़ाती
ज़रूरी चीज़ों की
लंबी लिस्ट,

सुनो ना ……

बुरा वक़्त ना कभी बीतता है
बुरा वक़्त ना कभी भूलता है,
बस जीता रहता है
इंसान के भीतर
ना भूलने देता है ना बीतने………….

————————-प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।