गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जमीं से आसमां तलक ग़मों के साए हैं
कि बनके बोझ जमीं पर हमतो आए हैं ।

ज़िंदगी कश्ती पे अपनी मुझे कहीं ले जा
अब यहां कोई नहीं मिरा है हम पराए हैं।

दर्द ए इल्ज़ाम किसको दें गुनहगार हूं मैं
दर्द के पौधे दिल में खुद ही तो लगाए हैं ।

इतना आसां नहीँ टूटकर बिखर जाना
हमने हर रोज़ इस दिल पे जख्म खाए हैं ।

उनकी तस्वीर समझकर अमानत अपनी
रात दिन दिल से ये तस्वीर हम लगाए हैं।

हरेक दिन का हिसाब देगे तुझे ले तो सही
सुन तेरी यादों में अश्क आज भी बहाए हैं ।

अपने दिल में छुपालो या रुसवा कर दो
बस तेरे लिए ही हम तेरे शहर में आए हैं ।

एक न एक दिन तो मिलेगी मंज़िल ये हमें
अभी थके नहीँ न कदम ही डगमगाए हैं ।

मिटाने से नहीँ मिटता दिल से अब जानिब
इस कदर हमको फिर आप याद आए हैं

— पावनी दीक्षित ‘जानिब’

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर