कविता

कविता : कभी था बरगद का पेड़ वहाँ

कभी था बरगद का पेड़ वहाँ
लगता जैसे काँपती सूरज की तपन
बच्चें-बुढ़े और युवाओंकी मण्डली
जमाये रहती थीं चौपाल वहाँ
सुबह हो या फिर शाम
और देर रात तक
जमे रहते थे लोग जहाँ
करते गपशप और वार्तालाप
कभी था बरगद का पेड़ वहाँ
जिसके नीचे मौसी की दुकान
चाय पीते खाते चने परमल
आते हैं याद वे दिन
समय के क्रूर हाथों
दे दी गई बरगद की बलि
और तन गया वहाँ कांक्रीट का जंगल
अब नहीं वहां बरगद की छांव
सूरज करता अट्टहास वहाँ
कैसे बचेंगे उसकी तपन से
आते हैं याद वे दिन जब
कभी था बरगद का पेड़ वहाँ।
छूट गये हैं कई संगी-साथी
बिछुड़ गये हैं अपने सारे
लगता है भला था अपना बचपन
और बेफिक्री की वह जिन्दगी
अब तो रह गई हैं यादे ही शेष
और हम भी रह जायेंगे यादों में
ठीक उस बरगद की तरह।।

डॉ प्रदीप उपाध्याय

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009