हास्य व्यंग्य

निंदक नियरे राखिए, अड़ोसी-पड़ोसी बनवाए

अब क्या कहूं कबीरदास जी को। खुद तो जो कुछ भुगतना था, भुगता और चले गए। लेकिन दूसरे लोगों के लिए ऐसी मुसीबत खड़ी कर गए कि उससे जान छुड़ाना मुश्किल हो रहा है। वैसे अगर अपनी परेशानियों को ताख पर रखकर बात कहूं, तो बड़े भले आदमी थे कबीरदास जी। पोंगापंथियों को बिन पानी, डिटरजेंट बिना ऐसा धोया कि पढ़-सुनकर मजा आ जाता है। लेकिन साहब! ‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय’ जैसी बात नहीं कहते, तो उनका क्या बिगड़ जाता। कहा जाता है कि कबीरदास जिंदगी भर अपने निंदकों से परेशान रहे। सोचा, मैं जिंदगी भर परेशान रहा, तो दूसरे कैसे मौज में रहें। सो, लिख डाली निंदक को अपने िनकट रखने की बात। लोगों ने कबीरदास की इस बात को एकदम राजाज्ञा मानकर निंदा कर्म जो शुरू किया, तो वह आज तक अबाध गति से जारी है। उनकी बात से लोगों को जैसे निंदा कर्म का लाइसेंस ही मिल गया। निंदकों की एक ऐसी परंपरा पुष्पित-पल्लवित हो गई जिसमें कई ख्यात-विख्यात निंदाकर्मी आते हैं। इस तरह हम जैसों सीधे-सादे आदमियों के लिए तो वे बखद्दर बो गए।
मेरे अड़ोस में रहते हैं मुसद्दीलाल और पड़ोस में मतिमंद जी। मतिमंद उनका तखल्लुस है। उनका असली नाम तो शायद उनकी बीवी भी नहीं जानती होगी। इन दोनों अड़ोसी और पड़ोसी को अपने मोहल्ले में मकान किराये पर दिलाकर मानो अपने निंदकों को आजू-बाजू में बसाने का पुनीत कार्य पूरा कर लिया हो। इन दोनों महानुभावों ने अपने आपको मेरा निंदक खुद नियुक्त किया और लग गए मेरा स्वभाव निर्मल करने में। मेरे चरित्र और कार्यों को बिना साबुन, पानी के इस तरह धोते हैं कि मानो मैं किसी गटर में जा गिरा उनका कुर्ता-पायजामा होऊं और वे गंदे कपड़ों को ड्राईक्लीन करने के विशेषज्ञ। पहले तो मैं उनके निंदक के पद पर स्वनियुक्त की बात समझ ही नहीं पाया। जब मोहल्ले की महिलाएं, लड़कियां और सज्जन-दुर्जन मुझसे बात करने से कतराने लगे, तो मेरे कान खड़े हुए।
कल तक मोहल्ले की महिलाएं आईटॉनिक प्रदान करने के िलए घंटों छज्जे पर, सड़क पर, घर के दरवाजे पर मौजूद रहती थीं। यह जानते हुए कि मैं उन्हें िनहारकर आईटॉनिक ग्रहण कर रहा हूं, वे मंडली जमाए रहती थीं, वे मुझे देखते ही झट से भीतर भागने लगीं, तो मैं परेशान हो गया। मैंने काफी कोशिश की, लेकिन कहीं से कोई सूत्र हाथ नहीं लगा। आज मोहल्ले की चक्की पर गेहूं पिसाने गया, तो छबीली से मुलाकात हो गई। छबीली मुझे देखकर पहले तो मुस्कुराई और फिर बोली, आजकल तो आपके पूरे मोहल्ले में बड़े चर्चे हैं। एक से बढ़कर एक किस्से-कहानियों के नायक बने हुए हो। फिर उसने ही मेरे अड़ोसी-पड़ोसी के निंदा कर्म का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया। छबीली से असलियत जानकर मुझे बहुत गुस्सा आया। घर आकर घरैतिन से सलाह मशविरा करने के बाद मैंने फैसला किया कि उपयुक्त अवसर आने पर मैं अपने अड़ोसी-पड़ोसी की पूरे मोहल्ले के सामने कड़ी निंदा करूंगा। फिलहाल, घरैतिन को डैमेज कंट्रोल विंग का कार्यभार सौंंप दिया है। वे मेरी छवि सुधारने में लग गई हैं।

*अशोक मिश्र

अशोक मिश्र समाचार संपादक हिंदी दैनिक न्यूज फॉक्स 65 ए, नारायण जी भवन, सिविल लाइंस, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश