कविता

कविता : भूख

किसान का बेटा बोला माँ से,
उलझन मेरी सुलझादो न।
नेता कैसे बनते है ?
मईया मुझे बतादो न।।

मुस्कुराकर बोली माँ,
घूम कहाँ तू आया है ?
मेरे प्यारे नेताजी का,
प्रश्न कहाँ से लाया है ?
चल आ पास मेरे,
दुनियाँ तुझे दिखाती हूँ।
नेता कैसे बनते है ?
आज तुझे बताती हूँ।

ये कोई फसल नहीं,
जो बापू तेरे उगाते है।
आपस में लड़वाना सीख लिया,
वो नेता ही बन जाते है।
ये ऐसा हुनर है जो,
किसी किसी को आता है।
हम लोगों का हक धन वैभव,
घर इनके ही जाता है।

हम तो खायें रूखी सूखी,
वो मेवा ही खाता है।
चुनाव में अपने वोट बैंक को,
अपनी बस्ती जलाता है।

ऐसा नहीं है, सारे नेता,
भ्रष्टाचार मचाते है।
पर बेटा, वो गिनती में कम,
भीड़ में ही छुप जाते है।

अच्छा मईया, अब मै समझा,
भूखे हम क्यों मरते है ?
पहले होते थे दानव अब नेता,
पूरी कमी ये उसकी करते है।

सौरभ दीक्षित “पिडिट्स”

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,