गीत/नवगीत

उठाई तो कंगाल थी प्याली

जिसको मैने दवाई समझी, उसी ने खतरे में जान डाली।
जिसे खजाना समझ रहे थे, खोला तो निकला वो खाली
जिसको मैनें दवाई…………..तो निकला वो खाली

खानदानी रईश समझे, काफी सोहरत दिखी थी उनकी।
चर्चे में बस वही थे शामिल, बज्में भी महफिलें थी उनकी।
मिजाज उनका, लहजा उनका, नई तिजारत बता रही है-
फूलों के कातिल वो निकले, दुनियां कहती है उनको माली
जिसको मैने दवाई……………तो निकला वो खाली

नजर मिला के नजर चुराये कोई सियासत जरूर होगी।
दौलत उनकी देख के लगता, उजड़ी, रियासत कोई तो होगी।
कहते थे हम चल नहीं सकते, दौड के निकल गये वो आगे-
पीने को अब तक थे कहते, उठाई तो कंगाल थी प्याली।
जिसको मैने दवाई…………..तो निकला वो खाली

हवा से दामन उड़ा क्या उनका, चेहरे पे चेहरे थे उनके।
कई कजाएं की थी जिसने, शरीफों में किस्से थे उनके।
समझ सके न गहरे राज को शबनम भी हीरे जैसा-
जिनको पढ़कर बढ़े थे आगे, किताबें मैने जला वो डाली।
जिसको मैने दवाई……………तो निकला वो खाली
राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782