कहानी

नाम में कुछ है

विद्यालय का यह रिवाज़ था कि जो भी कर्मचारी सेवा निवृत होता था, उसे पूरा विद्यालय मिलकर विदाई देता था | उस दिन एक चतुर्थ वर्ग कर्मचारी “बुद्धिमान” का विदाई समारोह आयोजन किया गया था | उस आयोजन में प्रत्येक कक्षा के कक्षा नायक, दुसरे सभी वर्ग के कर्मचारी, शिक्षक एवं प्राचार्य उपस्थित थे | सभी के भाषण के बाद “बुद्धिमान” को कुछ कहने के लिए कहा गया तो वह धीरे से उठकर मंच पर खड़ा हो गया | उसने बोलना शुरू किया, “ परम श्रद्धेय प्राचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण एवं प्रिय छात्रगण | मैं आपाद मस्तक इस विद्यालय का ऋणी हूँ और खास कर पिता तुल्य श्रद्धेय घई साहब, जो अभी हमारे बीच में नहीं है, उनका ऋणी हूँ | उनके कारण एक बुद्धू, आज बुद्धिमान के रूप में सेवा निवृत हो रहा है | आपको पता नहीं, मेरा नाम बुद्धू था |बचपन में मुझे सब बुद्धू कह कर पुकारते थे | मैं इसी स्कुल में पढ़ा पर यहाँ भी नाम बुद्धू था | मेरे साथी मेरा मज़ाक उड़ाते थे | ९ वीं के बाद गरीबी के कारण आगे पढ़ नहीं पाया | विद्यालय में कमरे की सफाई का काम में लग गया | मेरा काम देख कर प्राचार्य जी ने मुझे काम में स्थायी कर्मचारी बना दिया |लम्बी अवधि तक काम करने के बाद मुझे केमेस्ट्री लैब में अटेंडेंट के पोस्ट पर बहाल कर दिया गया परन्तु लड़के और साथी कर्मचारी मुझे हमेशा चिढाते रहते थे | मेरा आत्मविश्वास निम्नतम धरातल पर पहुँच गया था |उसी समय श्री घई साहब यहाँ केमेस्ट्री के व्याख्याता के रूप में आये |प्राचार्य से मुलाक़ात करने के बाद भौतिक शास्त्र के व्याख्याता श्री शर्मा जी के साथ लैब में आये | शर्मा जी ने मुझे आवाज़ लगाई, “ ए बुद्धू ,कहाँ हो तुम ?इधर आओ |” आवाज़ सुनकर मैं स्टोर रूम से जब बाहर आया तो शर्मा जी ने पूछा,”बुद्धू ,तुम कहाँ थे ?”
“मैं स्टोर रूम में था” मैंने कहा
“देखो आप हैं घई साहब, केमेस्ट्री के व्याख्याता हैं | अब से तुम इनके नीचे काम करोगे |” शर्मा जी ने कहा |
“जी प्रणाम सर “ मैंने घई साहब को प्रणाम किया | वे दोनों चेयर पर बैठ गए तो मैं स्टोर में उनके लिए चाय बनाने लगा | वहां से उनकी बातचीत मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी |
घई साहब बोल रहे थे, “ लड़का तो समझदार लगता है पर आप उसे बार बार बुद्धू क्यों बोल रहे थे ? पद में वह हम से छोटा है पर उसका भी तो आत्मसम्मान है |
शर्मा जी हा हा हा … कर हँस कर बोले, “सच जान कर आप भी उसे बुद्धू कहेंगे |”
“मैं तो उसे कभी बुद्धू नहीं कहूँगा” घई साहब ने कहा |
“घई साहब इसका नाम ही बुद्धू है | आप क्या कहकर बुलायेंगे ?
“नाम बुद्धू है? घई साहब को आश्चर्य हुआ
“हाँ बुद्धू है” शर्मा जी ने कहा |
तबतक मैं चाय ले कर आ गया था | घई साहब ने पूछा , “तुम्हार नाम क्या है ?”
शर्माते हुए मैं बोला “बुद्धू”
“ नहीं तुम बुद्धू नहीं, आज से तुम बुद्धिमान हो | मैं तुम्हे बुद्धिमान कहकर बुलाउंगा |
“लेकिन बांकी सब तो बुद्धू ही बुलाएँगे |” मैंने कहा
“ नहीं सब लोग तुम्हे बुद्धिमान बुलायेंगे | छुट्टी के बाद तुम मेरे साथ प्राचार्य के कमरे में आना |”
प्राचार्या जी से बात करके उन्होंने नाम परिवर्तन के सभी औप्चारिक्ताएं पूरा कर विद्यालय रजिस्टर में मेरा नाम “बुद्धिमान’ दर्ज करा दिया |प्रात: कालीन प्रार्थना सभा में घोषणा की कि मेरा नाम बुद्धू नहीं बुद्धिमान है | गलती से बुद्धू लिखा गया था | तब से लोग मुझे बुद्धिमान बुलाने लगे | बुद्धू के रूप में इस विद्यालय में आया था, विद्ध्यालय मुझे बुद्धिमान के रूप में विदा कर रहा है | इससे बड़ा उपहार किसको मिला है ? अब मुझे समझ में आया “नाम में कुछ है “| शत शत प्रणाम विद्यालय को ,और आप सबको |” धन्यवाद |

— कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !