मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

भीगी पलकों से ख्वाब चुराना तो अदा है,
भंवरें का फूल से पराग चुराना तो अदा है।
तुम क्या जानो हमने सब कुछ लूटा दिया,
प्यार में लूटा कर मुस्कराना भी तो अदा है।

पत्थर कभी दर्पण से, अदावत नही करते,
पत्थर कभी किसी से भी, बगावत नही करते।
जिसकी चाहत हो, खुद को भगवान बनाने की,
पत्थर वो मासूम हैं, जो सियासत नही करते।

कांपती अँगुलियों को तुम्हारा हाथ चाहिए,
लरजते होठों को प्यार का स्पर्श चाहिए।
अब नहीं जी सकते हैं हम तुम्हारे बिन,
तन्हां जिंदगी को तुम्हारा साथ चाहिए।

— डॉ अ कीर्तिवर्धन