स्वास्थ्य

बच्चों का आहार

भारत में प्रत्येक बच्चे की माँ अपने बच्चे के खान-पान के विषय में बहुत चिन्तित रहती है, जो कि स्वाभाविक भी है। यह चिन्ता पहले ही दिन से शुरू हो जाती है, हालांकि नवजात शिशु का एकमात्र आहार उसकी माँ का दूध ही होता है। शिशु के लिए माँ का दूध सर्वश्रेष्ठ ही नहीं अमृत के समान है। इसलिए यदि कोई माँ वास्तव में अपने शिशु का भला चाहती है, तो उसे कम से कम एक साल तक शिशु को अपना ही दुग्धपान कराना चाहिए। इससे शिशु न केवल स्वस्थ रहता है, बल्कि उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बनी रहती है।

कोई मजबूरी होने पर ही वे अपने शिशु को उपलब्धता के अनुसार क्रमशः किसी अन्य महिला का दूध, गाय का दूध, बकरी का दूध या मक्खन निकला भैंस का दूध दे सकती हैं। किसी भी हालत में उनको डिब्बाबंद सूखा दूध कम से कम एक साल की उम्र तक नहीं देना चाहिए।

एक साल का होने पर ही बच्चे का पाचन तंत्र अन्न से बनी वस्तुओं को पचाने योग्य होता है। इसलिए तभी उसे अन्न से बनी हल्की वस्तुएं जैसे पतली दाल, दलिया, उपमा, खिचड़ी आदि देना प्रारम्भ करना चाहिए। प्राचीन काल में बच्चे को अन्न खिलाना प्रारम्भ करने के अवसर पर एक संस्कार और समारोह हुआ करता था, जिसे अन्नप्राशन संस्कार कहते हैं। आजकल इसकी परम्परा टूट गयी है और इसके स्थान पर हर वर्ष जन्मदिन मनाने की परम्परा चल गयी है, जिनमें मोमबत्ती बुझाने जैसी मूर्खतायें की जाती हैं।

माँ की असली समस्या तब प्रारम्भ होती है, जब बच्चा अन्न खाने लगता है और दूध से बनी वस्तुओं को कम पसन्द करता है। यही समय है जब माँ आहार के सम्बंध में अपने बच्चे का सही मार्गदर्शन कर सकती है। इस समय बच्चे को जैसी वस्तुओं का स्वाद लगाया जाएगा, वह जीवन भर वैसी ही वस्तुओं को पसन्द करेगा, इसकी चिन्ता किये बिना कि वह वस्तु उसके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है या हानिकारक। इसलिए माता का यह कर्तव्य है कि इस समय बच्चे को केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक आहार ही दें और हानिकारक वस्तुओं का स्वाद उसके मुँह को न लगने दें।

बच्चे की खान-पान की पसन्द को दिशा देने के लिए वे फलों और अन्न से बनी सात्विक वस्तुएँ विभिन्न तरह से बनाकर उनको खिला सकती हैं, जैसे इडली, उपमा, दलिया, खिचड़ी, खीर, छाछ, लस्सी, फलों का रस, फल, फ्रूट चाट, आलू चाट, कस्टर्ड, शाकाहारी केक और सैंडविच, नूडल आदि। उनको अधिक चटपटेपन से बचायें और मैदा से बनी भारी व तली हुई वस्तुओं से भी दूर रखें। किसी भी हालत में उनको कम उम्र में पिज्जा, पेट्टीज, बर्गर, चाऊमीन, मंचूरियन जैसी चीजें न दें। यहाँ तक कि अंडे से बने केक भी नहीं देने चाहिए। सभी उम्र के बच्चों के लिए दिन में कम से कम एक बार फुलक्रीम दूध देना अनिवार्य है, ताकि उनके दिमाग को आवश्यक शक्ति मिलती रहे।

यदि प्रारम्भ से ही मातायें इन बातों को ध्यान में रखेंगी, तो न केवल उनके बच्चों का उचित शारीरिक और मानसिक विकास होगा, बल्कि वे बहुत सी बीमारियों से भी बचे रहेंगे।

विजय कुमार सिंघल
भाद्रपद कृ 2, सं 2074 वि (9 अगस्त 2017)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com