कविता

रिश्तो और परिवार

रिश्ते और परिवार
दोनो को ही
सहेज कर रखना पडता है
समय समय पर इसे
अपना साथ दे
मजबूत करना पडता है
यदि न दे अहमियत
किसी रिश्ते को तो
धीरे- धीरे बेजान हो जाते है
किसी पूराने ताले के भॉति
धूमिल हो जंक लग जाते है
उग आते है कुछ
अवांछनीय घास फूस
डाल देते है और गहरा चादर
जिसे तोडना मुश्किल हो जाता है
उसी तरह रिश्तो मे भी
फैल जाते है कुछ अफवाहें
जिसे फिर से किसी को समझाकर
रिश्ता संभालना मुश्किल हो जाता है
इस लिये हम पहले से ही
क्यो नही तरासते रहें
सोने के भॉति रिश्ते को
क्यो नही चमकाते रहे
समय समय पर साथ दे
रिश्तो को और गहरा बनाते रहें।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४