सामाजिक

मौत का तमाशा बच्चो की जान लेकर

मौत का तमाशा बच्चो की जान लेकर
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ये घटना जरूर उत्तर प्रदेश की है परन्तु ये रवैया पूरे देश के हर राज्य के अधिकतर अस्पतालों का है
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बच्चो की मौत पर जो एक बात याद आयी
ये जो स्कूलों में दवा दी जाती है
इसी पर एक बार किसी शिक्षक से बात हो रही थी। लड़की पढ़ी लिखी थी एम ए थी।
उसके घर बहुत सारी दवाइयाँ देखकर मैंने पूछा ये क्यों इतनी सारी तो बोली बच्चो के लिये है
सरकार की तरफ से मुफ्त में देने के लिये
लेकिन हमारी टीम में से कोई भी ये दवा बच्चो को नही देते क्योंकि कई दवाई पर अंतिम तिथि नही होती और न ही किसी डाॅक्टर की निगरानी में ये काम होता है ।
हम लोगो को दे दिया जाता है देने के लिये।
और हमें दवाइयों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसलिये पता ही नही चल पाता कि दवाई की एक्सपायरी डेट कबकी है ।
फिर वो खुद ही बोली कि हमारे अधिकारियों को ये बात नही पता हम बच्चो के माँ बाप को समझा देते हैं कि सिर्फ एंट्री करवा दीजिए कि दवा प्राप्त हुई । और उन्हें कारण भी बता देते हैं।
तब मैंने उससे कहा कि ये बात तो गलत है
तुम लोगो को इस बारे में अपने उच्च अधिकारियों से बात करनी चाहिये।
तब वह बोली कि किये थे दो चार बार।
तो कहते हैं अरे छोड़िये मैडम काहे सर दर्द पालती हैं हमारा काम है निर्देश मानना
बाकि सरकार जाने ।
वैसे भी क्या होगा उल्टे नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।
इसलिये अब मैं न किसी से कुछ कहती हूँ न बच्चो को दवा देती हूँ ।
सारी दवाई कूड़े दान में डाल देती हूँ।
मैं सब सुनकर सन्न रह गयी कि कितनी लापरवाही
यहाँ जीवन का कोई मूल्य ही नहीं बस सब अपनी नौकरी बजा रहे हैं सबको बस अपनी पड़ी है ।

एक वो डाॅक्टर है जो बच्चो को बचाने के लिये अपने डाॅक्टर दोस्तो से ऑक्सीजन सिलेण्डर ला रहा था और दूसरा वो डाॅक्टर जो कहता है है कि ऑक्सीजन की कमी से कभी कोई नहीं मरता मौत का कारण बिमारी होती है ।
जहाँ बच्चो बच्चो को ऑक्सीजन का महत्व पता है वहाँ किसी डाॅक्टर का ऐसा कहना कितना अमानवीय है
ऐसे को डाॅक्टर कहलाने का लायक ही नही समझना चाहिये ।
जहाँ 50,60 बच्चे अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गये
वो भले ही डाॅक्टर के लिये सरकार के लिये दवा देने वालो के लिये मीडिया के लिये 60 मरीज, खबर रहे होगे परन्तु उन साठो बच्चो में एक एक बच्चा अपने माँ बाप परिवार का एक बच्चा था उनकी संतान थी वो बच्चा उनका भविष्य था परिवार था
वो एक मरीज या छात्र छात्रा नहीं था
पूरे देश की सरकार विपक्ष और तमाम राजनैतिक पार्टियों के लिये मीडिया के लिये एक घटना बन कर रह जाएगी
फिर किसी दूसरी घटना के घटने पर भुला भी दिया जाएगा लेकिन
उन माँ बाप परिवारो की खोई संतान की कमी कभी पूरी नही होगी ।
वो रोज रोज रोएंगे ।

देश के कितने ही अस्पतालो का यही हाल है
न बिस्तर न पलंग न दवाई
यहाँ तक की साधारण इंजेक्शन लगाने के लिये स्प्रीट की के लिये रुई तक नही होती ।
ग्लुकोज और खून चढ़ाने के लिये स्टेंड और उसके पाईप के सपोर्ट देने के लिये टेप तक नही होता ।
ये मेरी आँखो देखा हुआ सच है
अस्पताल के स्टाफ से पूछो तो बोलते सामान आ ही नही रहा तो हम लोग क्या करें ।
हर जगह सब यही कहते हैं कि हम क्या करें हम क्या करें

तो आखिर कौन करेगा और कब करेगा
आखिर किसकी मौत इतना विचलित कर देगी कि सब कहने लगे कि
हम करेंगे हम करेंगे

बच्चो हम माफी माँगने लायक भी नहीं
शर्मिंदा हैं बहुत

एक माँ

-राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com