राजनीति

इसको मानकर ही ——

‘निश्चित तौर पर सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं है, लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान है ‘ इसको जेहन में रखकर ही सार्थक बहस हो सकता है. भावनाओं का खेल खेलकर ठकुरसुहाती करना इस विश्वब्यापी समस्या से आँख चुराना होगा. सारे लोभ-लाभ, निहितार्थ त्यागकर दुनिया के सभी सभ्य समाज को इस्लाम और इस्लामी आतंकवाद पर दो टूक राय रखना होगा. विश्लेषण करना होगा की आखिर जिस इस्लाम को लोग सहिष्णुता और सौहार्द का धर्म कहते है उसी धर्म को मानने वाले कुछ लोग पूरी दुनिया में आतंक का तांडव मचाये हुए है. हिन्दू आतंकी, इसाई आतंकी, बौद्ध आतंकी या यहूदी आतंकी का नाम तो कंही सुनने में नहीं आता फिर आतंक के साथ इस्लाम शब्द क्यों जुट जाता है. यद्यपि दुनिया के हर देश में स्थानीय कारणों से आतंकवाद किसी न किसी रूप में विद्यमान है लेकिन वह किसी धर्म के नाम से कत्तई नहीं जुडा हुआ है फिर इस्लाम के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. आई यस आई यस से लेकर अलकायदा तक, सब के सब क्यों इस्लाम से सम्बद्ध लगते है. आखिर ए आतंकवादी संगठन अपने संगठन के साथ कंही न कंही कैसे इस्लाम या मुहम्मद जैसे पवित्र शब्द जोड़ लेते है. जब की इस्लामी मजहब में धर्मगुरूओ की एक बहुत बड़ी लम्बी चौड़ी फ़ौज है और उनके पास फतवा जैसा एक अमोघ अस्त्र भी है फिर भी वे सब इनको क्यों नियंत्रित नहीं कर पा रहे है. यह इनके अंतर्नियत पर ही प्रश्न खडा कर रहा है.
इस्लामी आतंकवाद उतना खतरनाक नहीं है जितना की कुछ राष्ट्रों का इस समस्या के प्रति दोगला रवैया ! जो साफ़ साफ़ दिख रहे भयावहता के प्रति भी राजनैतिक लाभ साधने का प्रयास कर रहे है. इन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है की ए आतंकवादी किसी देश या किसी सीमा के लिए नहीं लड़ रहे है बल्कि ए पुरे विश्व के इस्लामीकरण के लिए लड़ रहे है. इस खतरे को समझकर भी अगर विश्व समुदाय न समझने का नाटक कर रहा है तो सिर्फ अकेले इस्लाम को दोषी कैसे कहा जा सकता है? इस्लाम को बिकृत करनेवाले भले मुट्ठी भर है लेकिन है तो वे इस्लाम को मानने वाले ही ! ऐसे में जब कोई कहता है की इस्लाम सहिष्णुता और सौहार्द का धर्म है तो हंसी आती है. यह तो उसी प्रकार हुआ की जैसे कोई कहे की फला विद्यालय बहुत अच्छा है, जबकि उसमे शिक्षा पाए विद्यार्थी नंबर एक के उद्दंड हो. अज सबसे अधिक इस पर इस्लाम धर्मावलम्बियों को चितन करने की जरुरत है. दुनिया धार्मिक कट्टरता से बहुत आगे जा चुकी है और हर देश इन आतंकवादियों से अपनी रक्षा करने में लगभग समर्थ है, जो भी नफ़ा-नुकसान होगा वह सिर्फ इस्लाम का ही होगा. इसलिए इनके खिलाफ जो भी कदम उठाना होगा मुसलमानों को ही उठाना होगा.
यद्यपि देखने में लगता है की भारत सबसे ज्यादा इसके चपेटे में है लेकिन यह मिथ्याभ्रम है, भारत इसके चपेटे में बिलकुल नहीं है अगर थोडा बहुत है भी तो आई यस आई यस या अलकायदा के वजह से नहीं बल्कि देश के अन्दर मौजूद कुछ कट्टर इस्लामी प्रवित्ति और राजनैतिक गिद्धों तथा कुटिल बुद्धिकारो के वजह से है. देश इनके चपेटे में आ सकता था इसकी संभावना पहले थी लेकिन मोदी के आने के बाद यह संभावना निर्मूल हो चुकी है. क्योकि मोदी घटनाओं नहीं उन प्रबित्तियो पर चिंतन करते है जिसके वजह से देश के अन्दर और काश्मीर में अलगाववादी प्रबित्तिया पनप रही है. इसके पहले की सरकारे अगर इसपर एक प्रतिशत भी चिंतन किये होते तो आज यह स्थिति नहीं होती. समझ में नहीं आता की आखिर कश्मीर का मुसलमान पकिस्तान की तरफ क्यों जाना चाहता है जबकि वहा का हिन्दू भारत की तरफ रहना चाहता है. पंजाब और राजस्थान का भी सीमा पकिस्तान से लगा हुआ है, वहा पकिस्तान भारत के खिलाफ लोगो को क्यों नहीं भड़का पा रहा है? यह कोई गूढ़ बात नहीं है, बस थोड़ा सा दिमाग लगाइए सबकुछ समझ में आ जाएगा. रह गई बात आतंकवाद से निबटने की तो भारत जिस दिन चीन या इसराइल बन जायेगा सारी कट्टरवादी प्रबित्तिया अपनाप समाप्त हो जाएगी. देश को आतंकवाद से कोई ख़तरा नहीं है, ख़तरा है तो उन प्रबित्तियो से जो बिगत ६५ सालो से अलगाववाद के लिए जमीन तैयार कर रही है.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104

2 thoughts on “इसको मानकर ही ——

  • राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

    आदरणीय सिंघल जी , इस्लामी आतंक वाद महज एक हौवा है जिसे दुनिया के कुछ राजनेता अपने निहितार्थ हेतु ज़िंदा रखना चाहते है बरना जिस इस्लामी आतंकवाद से पूरी दुनिया त्रस्त है , इस्राइल उससे बिलकुल निश्चिन्त क्यों है / बस आश्चर्यजनक है की इस्लाम धर्मावलम्बी जो दोमुहा खेल खेल रहे है वे क्यों नहीं समझ पा रहे है की उनके इस कृत्य से इस्लामी आतंकवाद भले बाद में समाप्त होगा लेकिन इस्लाम उससे पहले समाप्त हो जायेगा /

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. भारत के मुसलमान दुनिया भर में सबसे अधिक मूर्ख हैं. यह जानते हुए भी कि इस्लामी आतंकवाद से केवल उनका ही नुकसान हो रहा है, वे भावनात्मक रूप से आतंकवाद का मूक समर्थन करते हैं. उनसे किसी समझदारी की आशा कम से कम मुझको तो बिलकुल नहीं है. इस्लामी आतंकवाद नष्ट जरुर होगा, लेकिन मुझे डर है कि वह अपने साथ इस्लाम को भी नष्ट करा देगा, बशर्ते स्वयं मुस्लिम इसके खिलाफ एकजुट हो जाएँ, जिसकी सम्भावना लगभग शून्य है.

Comments are closed.