गीतिका/ग़ज़ल

बगाबत

बगाबत पे उतर आती है जिंदगी ,
कानून को परे रखकर खंजर की तरह ।
लहूलुहान हो जाते हैं रिश्ते भी आजकल,
गैरों को अपना बनाने की जुस्तजू की तरह ।
आंखों में उतर आती है नमी अक्सर ,
ढूंढने की चाहत में खुशियों की डगर ।
जल उठते हैं दो चिराग आहट पाकर ,
जैसे हो यादें पुरानी मोह्हबत की तरह ।
हां खुशियां लिखती हूँ मैं गमों को बेचकर
है आशिक़ी आज भी भूले हुए चंद लम्हों से,
गैर होकर भी कब कयामत का दौर थमा
उर्स में आज भी जवां है मोह्हबत इत्र की तरह।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017