हास्य व्यंग्य

सुन रहे हो न, निजता के पैरोकारों ?

इस देश का गजबै हाल है..किसी की निजता उसे कहाँ से कहाँ ले जाकर खड़ी कर देती है..! हमको तो ई लगता है कि अपन का सुपरीम कोरट ई बात जानता है क्योंकि, उसे भी लगता है, जब हमारा संविधानइ जब व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा की बात करता है तो, हम काहे इसमें रोड़ा बनें, आखिर बिना निजता के व्यक्ति में स्वतंत्रता और गरिमा का प्रवेश हो ही नहीं सकता! तो, कोरट ने झट से निजता को मौलिक अधिकार मान लिया। मानो, अब अपनी गोपनीयता बरकरार रखते हुए खूब स्वतंत्र होकर अपने गरिमा में वृद्धि लाइए..!
लो भइया! अभी ये निजता के पैरोकार भाई लोग, खुशी भी नहीं मना पाए थे और निजता पर पहाड़ जैसा टूट पड़ा! ये बाबा लोग भी न, निजता का गुड़ गोबर किए दे रहे हैं..गोपनीयता बरतते-बरतते बाबा तो बन जाते हैं, लेकिन गोपनीयता भंग होने पर बवाली बन जाते हैं। इसका मतलब तो यही निकलता है कि, निजता के ये पैरोकार होते हैं बड़े बवाली..कोई माने या न माने…! शायद कोरट भी यह भांप चुकी है, इसीलिए एक तरफ निजता की चादर देती है तो, दूसरी तरफ चादर सरकने पर यह सरेआम नंगा कर जेल भिजवा देती है..!! मतलब अब आप कहीं यह न कह बैठो कि भाई, यह कोरट तो निजता की कोई इज्जत ही नहीं करती..!
एक बात बताऊँ..लेकिन अवमानना के लिए क्षमाप्रार्थी होकर.. वह यह कि, उस दिन हमें अपनी न्यायपालिका पर बहुत गुस्सा आया था, निजता के पैरोकारों को उछलते देखकर..! तब मैंने यही सोचा था.. “निजता को मौलिक अधिकार बताकर, अब हमारी न्यायपालिका भी बाबागीरी पर उतर आई है”
लेकिन, अपनी न्यायपालिका तो बड़ी चतुर-सुजान निकली, है न? बिल्कुल कान को घुमाकर पकड़नेवाली है! अगर निजता को मूलाधिकार न मानती तो, अपनी निजता की अक्षुण्णता के बल पर धुरंधर बनने वाले ये बड़े-बड़े लोग यही कहते, “भई, अपने देश में लोकतंत्र का हनन हो रहा है..देश अलोकतांत्रिक बना जा रहा है..न्यायपालिका कुछ कर ही नहीं रही।”
हाँ, यही सब सोच-विचार कर न्यायपालिका ने कहा, “लो भाई! निजता में लिपटे हुए खूब लोकतांत्रिक बनो, लेकिन निजता हटते ही सलाखों के पीछे तुम्हारी स्वतंत्रता बैठ कर रोएगी भी” और यही कहते हुए कोरट ने बेचारे बाबा को रुला दिया..!!
मतलब भइया, मैं तो कहुंगा, “निजता के ऐ पैरोकारों! इस न्यायपालिका के झाँसे में मत आओ, नहीं तो निजता-फिजता के चक्कर में किसी दिन यह आपकी स्वतंत्रता भी छीन लेगी।”
भाई! यह सबको पता है.. इस देश के अधिकांश लोग, निजता-विहीन लोग ही हैं…इनके घरों में जाइए तो इनके घरों के दरवाजे खुले मिलते हैं..साँकल भी नहीं चढ़ी होती..इनके चूल्हों तक झाँक लीजिए.. इनके पास छिपाने को कुछ नहीं है…ये बिना निजता के गरिमा-विहीन लोग होते हैं…इनकी स्वतंत्रता दूसरों के रहमोकरम पर निर्भर होती है..और वहीं ये निजता वाले गरिमावान लोग, इन बेचारों की गरिमा और स्वतंत्रता दोनों को खाए हुए बाबा या महामानव बने फिरते हैं..
हाँ उस दिन निजता के पैरोकारों की खुशी देख मुझे बहुत दु:ख हुआ था…क्योंकि तब कोरट भी बाबागीरी पर मुहर लगाती प्रतीत हुई थी.. लेकिन नहीं, अब जाकर तसल्ली हुई है..आखिर, यह निजता बड़ी खतरनाक चीज है, जेल पहुँचा देती है..! कोरट तो निजता-विहीन लोगों का आदर करती है..!!

सुन रहे हो न, निजता के पैरोकारों..?

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.