ब्लॉग/परिचर्चा

धर्म या व्यवसाय ?

पिछले कुछ दिनों से धार्मिक मसले ही समाचारों की सुर्खियां बनी हुई हैं । 22 अगस्त को चीर प्रतीक्षित तीन तलाक मसले पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया । सदियों से मुस्लिम बहनें तीन तलाक जैसी कुप्रथा का शिकार होती रही हैं । ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इस रिवाज को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर छह महीने का तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश देना तथा केंद्र सरकार को इसपर कानून बनाने का निर्देश देना बहुत ही स्वागत योग्य फैसला लगा । सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सभी महिला संगठनों तथा राजनीतिक दलों ने स्वागत किया । मुस्लिम महिलाएं तो कई जगह मिठाइयां बांटते हुए बड़े उत्साह से अपनी खुशी का इजहार करती दिखीं ।

इन सब खबरों से पहले इसी विषय से संबंधित एक और कुप्रथा ‘ हलाला ‘ भी काफी चर्चा में था । इस विषय को बल मिला एक प्रमुख समाचार चैनल ‘ आज तक ‘ द्वारा हलाला के संदर्भ में कुछ मौलानाओं का स्टिंग आपरेशन दिखाने से । इस स्टिंग आपरेशन में कुछ मौलानाओं से हलाला के संदर्भ में बात शूट की गई थी । इस स्टिंग आपरेशन में कुछ मौलाना खुलेआम हलाला के लिए पैसे की मांग करते हुए दिखे । एक लाख से पचास हजार रुपयों की मांग तो ये मौलाना यूँ बेशर्मी से कर रहे थे जैसे मेहरबानी कर रहे हों ।
एक अमानवीय कृत्य ‘ तीन तलाक ‘ जिसका जिम्मेदार भी कोई पुरुष ही होता है और भुगतान करना पड़ता है उस निर्दोष मुक्तभोगी महिला को जो उसी इंसान को फिर से अपना शौहर कबुल करना चाहती है । उसे ‘ निकाह ए हलाला ‘ के तौर पर अपना जिस्म किसी अजनबी या मौलवी को सौंप कर इन से तलाक लेना पड़ता है और उसपर तुर्रा ये की जिसे जिस्म सौंपना है वह एक लाख से पचास हजार रुपये भी मांगे । कैसा धर्म है ये और कैसा है ये धार्मिक कृत्य ? यह जानकर मन में सवाल उठना स्वाभाविक है ‘ धर्म है या व्यापार ? ‘

अभी वादविवाद का यह माहौल थमा भी नहीं था कि एक और ब्रेकिंग न्यूज़ ने खबरिया चैनल के पत्रकारों को व्यस्त बना दिया । 24 अगस्त को ही ‘ क्या होगा बाबा राम रहीम का ? ‘ समाचारों की सुर्खियां बन चुका था । इसी मुद्दे पर विभिन्न चैनलों पर विशिष्ट महानुभाव अपने अपने मत व्यक्त करते हुए अदालत से पहले ही अदालत के फैसले का पोस्टमार्टम करने में लगे हुए थे । बीच बीच में खबरें मुखर हो उठती कल बाबा राम रहीम पर सुप्रीम फैसला आनेवाला है ‘ क्या होगा बाबा का ? ‘ । इन्हीं समाचारों के बीच उच्च न्यायालय के आदेश भी समाचारों में बता दिए जाते । जिसके मुताबिक बार बार माननीय न्यायालय ने सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के आदेश दिए । दिखावे के लिए धारा 144 लागू कर दी गयी लेकिन इसके बावजूद पंचकूला में लाखों अनुयायियों की भीड़ कैसे जमा हो गयी ,यह सवाल आज भी अनुत्तरित है । न्यायालय के बार बार निर्देशित किये जाने के बावजूद सरकार मामले की गंभीरता से जानबूझकर लापरवाह रही और नतीजे भी अपेक्षित ही रहे । न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के दो घंटे के भीतर आगजनी में अरबों रुपये की संपत्ति स्वाहा कर दी गयी थी और लगभग 20 मौतें हो चुकी थीं । लगभग 36 जिंदगियां लील कर बाबा के भक्तों का आक्रोश शांत हुआ ।

कोर्ट के आदेशानुसार बाबा की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई में भी प्रशासन के पसीने छूट गए लिहाजा सेना की मदद लेनी पड़ी । विडंबना ही कहा जायेगा सीमा पर तल्ख हालातों के बीच सेना को घरेलू हालात से भी मोर्चा लेना पड़ा । गनीमत रही बिना किसी ज्यादा नुकसान के सेना ने बाबा के सिरसा स्थित मुख्य आश्रम पर कब्जा जमा लिया । बताया जाता है कि यह आश्रम इतना विशाल है कि यहां रोज लगभग एक लाख भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती थी । आश्रम से हथियारों का बड़ा जखीरा मिलना कोई हैरत की बात नहीं । हैरत तो इस बात का है कि अगर इतने अधिक और आधुनिक हथियारों के स्वामी को बाबा कहते हैं तो फिर ‘ आतंकवादी ‘ किसे कहते हैं ?

बाबा की जायदाद कई हजार करोड़ों में बताई जाती है । पंजाब और हरियाणा में अनगिनत ( लगभग 250 ) आश्रमों के अलावा बाबा की देश विदेश में भी अकूत व अनगिनत संपत्तियां हैं । कहाँ से आया इतना धन ? क्या बाबा ने डाका डाला ? बैंक लुटे ? नहीं ! बेईमानी की या कोई व्यवसाय किया ? हाँ ! बाबा ने व्यवसाय किया शुद्ध मुनाफे वाला व्यवसाय ‘ धर्म का व्यवसाय ‘।

आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागते हुए अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हुए इंसान कब बेदम हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता । उसे पता ही नहीं चलता कि उसे होनेवाली तकलीफों का वह खुद जिम्मेदार है और फिर झूठे सुख की तलाश में एक आम इंसान इन बाबाओं की शरण में चला जाता है । ये बाबा बेहद शातिर , वाक्पटु तथा चालाक होते हैं जो ऐसे नए भक्तों के लिए अपना लच्छेदार प्रवचनों का ऐसा मजबूत जाल डालते हैं कि फिर वह नया इंसान पहले खुद को फिर अपनी पत्नी हित मित्र के साथ ही दूसरों को भी बाबा की मानसिक गुलामी के लिए तैयार कर लेता है । बाबा की महानता का बखान करते नहीं थकता है । इस तरह से ऐसे बाबाओं के चेलों की संख्या लाखों से करोड़ों में बढ़ती जाती है । एक अनुमान के मुताबिक बाबा राम रहीम के शिष्यों की संख्या ही लगभग 5 करोड़ के पार है ।

आजादी के सत्तर सालों बाद आज भी हमारे देश में भुखमरी व इलाज के अभाव में होनेवाली मौतें हमारे विकास के माथे पर एक बदनुमा दाग हैं । एक नागरिक की हैसियत से हम अपने ही भाई बंधुओं की गरीबी दूर करने का स्वयं कोई प्रबंध करने की बजाय सरकारों की मदद का इंतजार करते हैं , सरकार द्वारा विफल रहने पर धरना प्रदर्शन करते हैं । पैसे जुलूसों , झंडे ,बैनरों पर खर्च करते हैं लेकिन किसी भूखे की भूख मिटाने की पहल नहीं कर पाते । किसी गरीब की मदद करने का ख्याल भी अपने मन में नहीं लाते जबकि ऐसे ढोंगी बाबाओं की संस्थाओं में आश्रमों में करोड़ों का चंदा देकर भगवान के प्रति अपना फर्ज पूरा करने का सुख प्राप्त कर लेते हैं । इन संस्थानों के पैसे का उपयोग कुछ प्रतिशत ही दिखावे के लिए अच्छे कामों में किया जाता है बाकी पैसों का उपयोग कहाँ किया जाता है यह सिरसा आश्रम में बरामद हथियारों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है । इन पैसों के दम पर ही एक अपराधी बाबा धारा 144 के बीच भी सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ न्यायालय में पहुंचता है । इतना ही नहीं जज के आदेश पर बाबा को हिरासत में लिए जाने पर राज्य का प्रमुख सरकारी वकील उनका अभिवादन करता है और उनका समान खुद उठाकर चलता है । यह पैसे और प्रभाव का ही दम था कि पूरा का पूरा सरकारी अमला अप्रत्यक्ष रूप से बाबा की तीमारदारी में लगा रहा और अनुमानतः लगा भी रहेगा । कहाँ से मिला बाबा को यह अकूत धन ,पॉवर और रुतबा ? जिस देश में लगभग साठ प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे हो वहां इन्हीं गरीबों की अंधभक्ति के चलते ऐसे दुराचारी बाबाओं की अथाह दौलत और शक्ति हमारे मानसिक विकास के दिवालियेपन की निशानी ही माना जायेगा । बाबा से तात्पर्य सभी बाबाओं से नहीं है कुछ अपवाद भी हो सकते हैं लेकिन सच्चे बाबा जो भक्तों को मद ,मोह , क्रोध ,लोभ त्यागने की शिक्षा देते हैं वो कभी भी भक्तों को भ्रमित कर उनके पैसे पर ऐश करने का लोभ नहीं करते । करोड़ो की संपत्ति अर्जित नहीं करते । लेकिन ये कुछ कलयुगी साधु जिनकी पोल खुल गयी है मसलन आसाराम , बाबा रामपाल और अब बाबा राम रहीम जैसे संत साधुओं के क्रियाकलाप क्या हम हिंदुओं को कलंकित करने के लिए काफी नहीं हैं ? हमारा समाज हमेशा से ही जागरूक , व प्रगतिशील विचारों का समर्थक रहा है । इतिहास गवाह है हमारे समाज ने समय समय पर सामाजिक कुरीतियों का स्वतः संज्ञान लेकर उससे निजात पाई है । ऐसी ही वीभत्स कुरीतियों में हम सती प्रथा का उल्लेख कर सकते हैं । पर्दा प्रथा के साथ ही बाल विवाह का विरोध व विधवा विवाह का समर्थन हमारे प्रगतिशील विचारों का प्रदर्शन ही करता है । अस्पृश्यता से हम पूरी तरह निजात पा चुके हैं । दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों से जंग जारी है जिसके अपेक्षित नतीजे उत्साहित करनेवाले हैं । ऐसे में इन बाबाओं के स्याह कारनामे कहीं न कहीं हमें चेहरा छिपाने पर मजबूर कर देते हैं क्योंकि इनके उभरने व ताकतवर होने के पीछे कहीं न कहीं हमारी ही भूमिका रही है । बस ! अब बहुत हो चुका धर्म के नाम पर इन बाबाओं का व्यवसाय ! आओ ! सब मिलकर समाज को जागरूक करने का प्रण करें ।
ऐसे बाबा लोग सिर्फ दान व चंदा लेकर ही लोगों को नहीं ठगते बड़ी राशि तो ये एकमुश्त राजनीतिक दलों से कमाते हैं । इन बाबाओं का अंधभक्तों पर प्रभाव देखकर इनके समर्थन के लिए राजनीतिक दलों द्वारा अकूत धन यदि इन्हें मिलता हो तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है । आम लोगों को तो सिर्फ गुरुभक्ति ही दिखानी है ,इन बाबाओं को सम्पूर्ण अधिकार है भोलेभाले लोगों की इच्छाओं को अपने अनुरूप इस्तेमाल करने का । बाबा का फरमान जिस भी दल को सहयोग करने का हुआ राज्य में उसकी सरकार बनना मुश्किल नहीं है । अब इसके ऐवज में बाबा को कितना भुगतान हुआ होगा या नहीं यह तो संबंधित पार्टियां या ये तथाकथित बाबा ही बेहतर जानते होंगे । हम तो सिर्फ कयास ही लगा सकते हैं । वैसे अंदाजा आप लोग भी लगा सकते हैं और महसूस कर सकते हैं धर्म के इस व्यवसायीकरण को । क्या इतना फायदेमंद कोई और व्यवसाय हो सकता है जिसमें करोड़ों लोगों पर प्रभाव , जान देने की हद तक चाहनेवाले समर्थक , बड़े बड़े रसूखदार से लेकर राजनीतिज्ञों के अलावा पूरी सरकार को नतमस्तक करवाने का सामर्थ्य सिर्फ इसी व्यवसाय में है ।
कुछ आश्रमों की लिप्तता रही है काले धन को सफेद करने के मामलों में । कुछ दिनों की चर्चा के बाद आखिर राजनीतिक रसूख काम आ ही जाता है और लोग सबकुछ विसर कर फिर से बाबा भक्ति में मग्न हो जाते हैं । तो क्या सोच रहे हैं ? है न फायदे का व्यवसाय ?
वैसे कोशिश राजनीति में भी की जा सकती है ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “धर्म या व्यवसाय ?

  • आशीष कुमार त्रिवेदी

    बहुत अच्छा लेख।

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईसाहब ! अभी अभी खबर चल रही है कि बाबा को 20 साल की सजा मिली है सश्रम कारावास की । बीमार मानसिकता वालों के समर्थन से ही ऐसे बाबाओं का उदय होता है यह आपने सही कहा है । आज हर चीज का व्यवसायीकरण हो रहा है । धर्म का व्यवसायीकरण ऐसे नकली बाबाओं द्वारा किया जा रहा है लेकिन दुखद है लोगों व राजनीतिज्ञों का इन्हें समर्थन करना । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राजकुमार भाई , अभी अभी खबर आई है किः बाबा बलात्कारी बदमाश और बेईमान को दस साल का कारावास प्राप्त हो गिया है और जल्दी बैकुंठ धाम में जाने वाले हैं .अब सवाल तो यह पैदा होता है किः भारत की किया उन्ती हुई है, मुझे तो कोई समझ नहीं आता . कभी कहीं कोई देवी बन कर भगतों को लूट रही है, कहीं नए नए बाबे पैदा हो रहे हैं .
    इन दरों को प्रोत्साहत कने वाले सिआसी लोग हैं जो वोटों की खातर इन के बुरे कामों की ओर से आँखें मूँद लेते हैं .अब आवाज़ उठाने की जरूरत है किः कानूनन किसे राजनेता को दरों से वोटें माँगना बंद हो .what can i say, india is a nation of sick minded people .

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब ! अभी अभी खबर चल रही है कि बाबा को 20 साल की सजा मिली है सश्रम कारावास की । बीमार मानसिकता वालों के समर्थन से ही ऐसे बाबाओं का उदय होता है यह आपने सही कहा है । आज हर चीज का व्यवसायीकरण हो रहा है । धर्म का व्यवसायीकरण ऐसे नकली बाबाओं द्वारा किया जा रहा है लेकिन दुखद है लोगों व राजनीतिज्ञों का इन्हें समर्थन करना । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

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