हास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : ट्रैन का डब्बा और ज्ञानी पुरुष

सफर का मजा लेना हो तो सामान कम रखिये ॥

जिंदगी का मजा लेना हो तो अरमान कम रखिये ॥

मुझे इसमें थोड़े संशोधन की जरूरत महसूस हुई ।

सफर का मजा लेना हो तो ट्रैन की सामान्य श्रेणी में चलिए ॥

देश के हालात की असली तस्वीर के लिए इनमे सफर करते ज्ञानियों से मिलिए ॥

वैसे तो ज्ञानी पुरुष देश के कोने कोने में फैले हुए है पर वास्तविक ज्ञानी ट्रैन के सामान्य श्रेणी में आसानी से मिल जाते हैं । जब एक यात्रा पर जाना पड़ा तो यही तय किया की क्यों न ज्ञानियों से मिला जाए एक पंथ दो काज । आपको जानकार आश्चर्य होगा की मुझे अरस्तू और सुकरात जैसे फिलासफरों की इस बात की सच्चाई का पता चला  की जैसे जैसे आप जानते जायेंगें आपको पता चलेगा की आप तो कुछ भी नहीं जानते ।

इन ज्ञानियों से मिलकर तो मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए ।

स्टेशन पर गाडी रुकते ही दौड़कर सामान्य श्रेणी में चढ़ गया, एवेरेस्ट पर चढ़कर जो ख़ुशी शेरपा तेनज़िंग या चाँद पर पहला कदम रखने वाले आर्मस्ट्रोंग को मिली होगी वो ही ख़ुशी डिब्बे में चढ़ने में सफल होने पर मिलती है इस बात का भी पता चला । हाथ जोड़कर विनती करने पर एक अधेड़ व्यक्ति ने पास बैठने की जगह देने की कृपा की । उसके पास ही एक नवयुवक भी बैठा था ।

आसपास नजर दौड़ाई तो दरवाजे पर मैले कुचैले कपडे पहने  मूंगफली खाकर छिलके वहीँ फेंकती एक स्त्री नजर आई जो मोदी जी के स्वच्छता अभियान की धज्जियाँ उड़ा रही थी । कुछ लोग बैठे ताश खेल रहे थे । एक कोने में एक बुर्के वाली औरत बच्चे के साथ बैठी थी ।

ट्रैन के छूटने का समय हो रहा था उसी समय वो नवयुवक खाली प्लास्टिक की बोतल लिए अधेड़ से बोलै : दददू भूल गया होत तनिक  ले आवत हूँ  । शीघ्र ही वो पानी लेकर वापस आ गया । इतने में ट्रैन चल पड़ी। अधेड़: में तो डर गया होत कहुँ पानी के लाने ट्रैन ही न छूट जाओ तुमरी। नवयुवक: ऊ का है कि  दद्दा पानी के नल पर आजकल भीड़ नहीं रहत सारा नल का पानी बोतलों में भर भर के जे लोक करोड़ों कमा रये हैं । कहत है इस पानी से पेट खराब होत है जनता मूरख है हमरो पेट तो कबहुँ नईं ख़राब भओ । मोदी जी कहत हैं की भ्रष्टाचारी बंद भई है सब बकवास है ।

इतने में बुर्के वाली औरत बच्चे के साथ टॉयलेट तक गयी ।  नवयुवक : दद्दा, मोदी जी ने जे अच्छो कियो कि इनका तलाक ख़त्म करवा दओ (उसे नहीं मालुम था की तलाक कोर्ट के फैसले से ख़त्म हुआ ) । दददू : कछु न  होण को कोई फर्क न पड़बो, तलाक वैसे ई चलबो, कौन औरत  अदालत के बरसों चक्कर लगावे ? नवयुवक : दद्दा जे राम रहीम का  का भओ ? ससुरा जेल चला गओ, दूसरों से थोड़ा हुशियार होत । डाका नई डालों ओमें कित्ता मिलत ? जनता लुटन को तैयार तो जे लूटन को तैयार । हमसे न पूछो  हतो,  इत्ते लोगन को  जितवाय दियो उनकी सरकार बनवाय दी। पाकिस्तान के आतंकी हाफिज सईद से भी कछु न सीखो काय नईं खुद की पार्टी बना के इत्ते जितवा दिए होत तो आज मुखमंत्री की कुर्सी पर होतो फिर कौन माई का लाल उसे जेल भिजवात। आसपास के लोग भी उस ज्ञानी के ज्ञान से चकित रह गए ।

मुझे लीला बहन जी के अनमोल वचन इनके वचनो के सामने फीके मालुम पड़े । मेरा स्टेशन आ गया था, अफ़सोस हुआ कि ज्ञानी की और ज्ञानपूर्ण बातों से वंचित रह गया ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

6 thoughts on “हास्य-व्यंग्य : ट्रैन का डब्बा और ज्ञानी पुरुष

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, आपके ब्लॉग ज्ञानवर्धक होते हुए भी मनोरंजन और रोचकता से भरपूर होते हैं. आपने इस ज्ञान को हमारे साथ साझा किया, हमें भी रेल-यात्रा के बिना अनेक नवीन जानकारियां मिल गईं. नायाब प्रतिक्रियाओं की तरह नायाब, अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका आभार.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय लीला बहन जी,
      आपको मेरा ब्लॉग ज्ञानवर्धक, मनोरंजक, और रोचक लिखा जानकार बहुत
      प्रसन्नता हुई । आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद. ।

  • रविन्दर सूदन

    प्रिय राजकुमार भाई साहब जी,
    आपकी अमूल्य टिपण्णी से प्रोत्साहन मिला । बहुत बहुत धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रवेंदर भाई , ट्रेन चर्चा तो खूब रही लेकिन मुझे भी अब गियान हो गिया किः इस युग में अब जंगल तो रहे नहीं . अब गियान हासल करने के लिए रेलवे पास बना लेना चाहिए और जब गियान भण्डार भर जाए तो दूसरों को गियान देने के लिए ग्रन्थ लिख दो और अमर हो जाओ !!!!

    • रविन्दर सूदन

      प्रिय गुरमेल भाई जी,
      आपकी टिप्पणियां बहुत मजेदार रहती हैं । आपकी प्रतिक्रिया के बिना ब्लॉग अधूरा लगता है । ज्ञानी पुरुष हमारे देश के चप्पे चप्पे पर मौजूद रहते हैं । इनके ज्ञान के बिना सफर अधूरा अधौरा लगता है ।

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय रविंदर भाईसाहब ! काश ! रेल के सफर में आपकी मंजिल इतनी जल्दी नहीं आती ! तो आप कुछ और नायाब ज्ञान पाठकों से साझा करते । एक बार मैं भी ऐसे ही गांव के चौराहे पर चाय पीने के दौरान अनुपम ज्ञान से लाभान्वित हुआ जिसे मैंने कलमबद्ध किया । पढ़ें मेरी रचना ‘ चाय पर चर्चा ‘ जो 4 भागों में है । अति सुंदर लेख के लिए धन्यवाद ।

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