इतिहास

संतो के संत बाबूजी महाराज (भाग-3)

स्वामी विवेकानंद और लालाजी ने संस्था बनाने के लिए पूरी बातें विस्तार से समझाई । कैसे लोगों को संस्था में रखना है, उनकी आध्यात्मिक समस्याओं को कैसे हल करना, क्या क्या कठिनाइयां आएँगी । लालाजी  ने कहा की तुमने अब तक कही बातों को बखूबी पूरा किया है । तुमने विभिन्न स्थानों की धरती में कई गज गहरे तक आलोकित किया है । बड़े गर्व की बात है की तुम्हारी अनुपस्थिति में तुम्हारे घर की रखवाली में कृष्ण जी का चक्र वहां घूम रहा था । तुमने कुदरत को अपनी और इस हद तक आकर्षित कर लिया है की तुम सीधे अपनी मर्जी से जैसा चाहो वैसा आदेश दे सकते हो ।

९ फरवरी १९४५ : मैंने अपनी स्वर्गीय पिता की आत्मा को प्राणाहुति दी । लालाजी  ने बताया तुमने अनजाने में अपने पिता में असीम शक्ति भर दी है, अब जब तक मैं न कहूँ दुबारा उन्हें प्राणाहुति न देना ।  स्वामी विवेकानंद ने कहा की हजरत ईसा हमारे साथ हैं हम सबने तुम्हें कुछ काम सौपने का निश्चय किया है । हजरत ईसा का यह मत है की यूरोप की सभ्यता संहार का रूप लेकर अपने शिखर पर पहुँच गयी है , उसे अब और अधिक जीवित नहीं रहना चाहिए ।

१३ फरवरी १९४५ : मेरे जीवन में एक नया पहलू- परमसत्ता से सीधे अनुग्रह की प्राप्ति हुई । बड़े बड़े संतों को इसकी लालसा रहती है । भगवान् श्रीकृष्ण : भक्तों में तुम्हें प्रथम स्थान दिया है । तुमने ऐसे करिश्में कर दिखाए हैं जिसका तुम्हे भी नहीं पता । तुम पर राधाजी का भी प्रेम है । तुम इतने भाग्यवान हो की राधा जी ने तुम्हें पुत्रवत स्वीकार किया है । तुम्हें भी उनसे माँ के समान प्यार करना चाहिए । स्वामी विवेकानंद : हमारी ख़ुशी का पार नहीं है । तुमने राधा जी का प्रेम प्राप्त कर लिया है । मैं उस आदमी को अँधा कहूंगा जो तुम्हारे पास आध्यात्मिक प्रशिक्षण के लिए नहीं आता । २२ फरवरी १९४५ : लालजी ने मोक्ष प्राप्ति के लिए संस्कारों से छूटने की कई विधियां उद्घाटित की…..।

२६ फरवरी १९४५ : गुरु नानक जी ने मुझे ध्यान करवाया और मुझमें विलीन हो गए । बोले: मेरे दिल में संजोयी मेरी इच्छा आज पूरी हो गयी । तुम्हें इस तरह ढालने के लिए तुम्हारे गुरु को बधाई देता हूँ । तुम मुझसे भी सीधे आदेश पाओगे । लाला जी ने इस पर ख़ुशी जाहिर की ।

९ मार्च १९४५ : चैतन्य महाप्रभु ने बताया की अपने जीवन काल में वे कैसे भगवान् श्रीकृष्ण से संपर्क किया करते थे । उन्होंने अपनी संस्था का कार्य भी मुझे सौंप दिया ।  लालाजी ने बताया की कृष्ण जी कुम्भ मेले में मुझे हरिद्वार भेजना चाहते हैं ।  दिन में ११:३० बजे लालजी ने सूचना दी की फारस में कोई ईश्वर भक्त शरीर छोड़ने वाला है मैं उसकी देखभाल करूँ । मैं इस काम में लगा रहा । उसका देहांत हो जाने पर उसे प्राणाहुति देनी  बंद कर दी ।

सूक्ष्म शरीर को बाहर निकालने के बाद उसको जीवन प्रदान करने की एक नयी विधि मैंने खोज निकाली । उसे शक्ति देकर किसी काम में लगाया जा सकता है । अगस्त्य ऋषि ने मुझे इस खोज के लिए बधाई दी । रात में लंका के संत ने फतेहगढ़ में होने वाले भंडारे में होने वाली व्यवस्था के बारे पूछा । उन्होंने कहा की भंडारे के समय मेरे साथ रहने की आज्ञा भगवान् कृष्ण ने उनको दी है , रात ११:३० पर अगस्त्य ऋषि ने भी बताया की उन्हें भंडारे के समय मेरे साथ रहने का आदेश मिला है । पूज्य लालजी ने मेरे जीवन काल तक उच्चतर लोक में न जाने का अपना निश्चय मुझे बताया ।

संक्षेप में मार्च-दिसम्बर १९४५ : गौतम बुद्ध अंत:संचार के माध्यम से बोले उनकी प्रशिक्षण विधि वही थी जो लाला जी महाराज की थी । फतेहगढ़ में भंडारे के दिन बाबूजी को लालाजी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया । चैतन्य महाप्रभु ने उलाहना दिया की मैं उनसे कोई काम न ले रहा हूँ न उन्हें कोई काम बता रहा हूँ । ऋषि धन्वंतरि जी ने विभिन्न पौधों और जड़ी बूटियों के लाभ बताये ।

१९४६-१९४९  : गौतम बुद्ध से बात (संक्षेप में) ; मैंने अपना जीवन जंगल में बिताया और पत्तियाँ चबाई मैंने बहुत अभ्यास, दुःख और क्लेश सहा तब यह प्रकाश मिला । तुम्हें वह मुफ्त में मिल गयी (अपने गुरु की कृपा से) इसलिए तुम्हें उसकी सही कीमत का पता नहीं लगा । तुम्हारे मिशन (सहज मार्ग) की यह विधि इतनी आसान बना दी गयी है की इसकी महिमा घट गयी है । भगवान् बुद्ध ने प्रशिक्षक (गुरु) के कुछ गुण बताये की उसका कैसा व्यवहार होना चाहिए और शिष्यों से क्या अपेक्षा की जानी चाहिए । भगवान् बुद्ध ने मुझे उस पीपल के वृक्ष को आध्यात्मिक ऊर्जा से आवेशित करने की आज्ञा दी जिसके नीचे उन्होंने तपस्या की थी । उन्होंने कहा की हर समय जमीन से अनुग्रह बरसना चाहिए मैंने वह काम पूरा किया । लखीमपुर में श्रीकृष्ण भगवान् और राधा जी दोनों ने प्राणाहुति दी । राधा जी से प्रथम बार प्राणाहुति मिली ।

फरवरी १९४७ : हनुमान जी ने बताया : मेरी कोई पूँछ नहीं थी । लंका के चारों और सागर की गैस विपुलता में मौजूद है अपनी संकल्प शक्ति से मैंने उसे सागर से निकाला और उससे लंका दहन किया ।

योगिराज शंकर जी ने बताया की वह बहुत दिनों तक जीवित रहे जब चाहे योगिक शक्ति से युवा हो जाते थे । कैलाश में रहते थे रावण उनका शिष्य था । उन्होंने कहा  पार्वती के पति के रूप में मेरी पूजा गलत है मैं आजीवन ब्रह्मचारी था । दो दिन बाद पार्वती जी ने आलेख लिखवाया की योगिराज शंकर से मेरे विवाह की कथा झूठी है ।पार्वती जी ने बताया: मैं एक पवित्र स्त्री और राजकुमारी थी । मेरे भावी पति दक्षिण राज्य के राजकुमार थे ।मैंने उनसे प्रेम किया और पाने के लिए तपस्या की । हमने जीवन के बहुत से सुखमय वर्ष बिताए । उनके संसार से विदा होने के बाद मैं उनकी चिता पर सती हो गयी ।  कबीर जी ने बनारस जाकर वहां की व्यवस्था ठीक करने का आग्रह किया ।

अगले अंक में सहज मार्ग की स्थापना में भगवान् श्रीकृष्ण और स्वामी विवेकानंद का योगदान ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

7 thoughts on “संतो के संत बाबूजी महाराज (भाग-3)

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय लीला बहन जी,
    आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ । आपका कथन ही
    इस लेख का सार है की सभी आध्याअत्मिक शक्तियां ऐसे संतों को अपनी
    अक्षय ऊर्जा से आप्लावित करती हैं. कालांतर में यही अक्षय ऊर्जा आप जैसे
    शिष्यों को मिलती है । मेरा व्यक्तिगत अनुभव आपने उसकी कहानी में पढ़ा
    परन्तु रोजमर्रा की जिंदगी में बाबूजी की कृपा से ऐसे कई और भी चमत्कार हो चुके हैं ।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सी नई जानकारियाँ मिलीं. हनुमान जी के पूंछ नहीं थी, यह हम पहले से मानते हैं.
    शंकर जी के ब्रह्मचारी होने की बात आश्चर्यजनक है. सनातनी लोग इस पर बहुत हायतौबा मचा सकते हैं. पर यह बात सत्य लगती है.
    आपको बहुत बहुत साधुवाद !

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय सिंघल जी,
      आपने अपनी व्यस्त दिनचर्या के बाद भी लेख पढ़ने का समय निकाला और अमूल्य प्रतिक्रिया भी दी इसके लिए हृदय से आपका आभारी हूँ । बाबूजी की प्रकाशित पुस्तक से उनकी डायरी के अंश लिए हैं । पहले दुविधा में था की शंकर जी के ब्रह्मचारी होने की बात लेख में लिखूं या नहीं फिर यह बात तो स्वयं उनकी प्रकाशित पुस्तक में है तो मैं क्यों हिचकिचाऊं सोच कर इसे भी उद्घृत कर दिया ।

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय रविंदर भाई जी ! आध्यात्मिकता से ओतप्रोत यह कड़ी भी कई गूढ़ रहस्यों को समेटे बहुत ही प्रेरक लगी । सुंदर कड़ी के लिए धन्यवाद ।

    • रविन्दर सूदन

      प्रिय राजकुमार भाई जी,
      आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । आप सब ने मेरे लेख उसकी
      कहानी में मेरे गुरु की कृपा के सम्बन्ध में पढ़ा ही होगा जो थोड़ा इशारा किया
      था वो यही बाबूजी महाराज हैं और इनकी शरण में आने के बाद तो मेरा जीवन ही बदल गया है ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय रविंदर भाई जी, परमसत्ता से सीधे अनुग्रह की प्राप्ति किसी सौभाग्यवान को ही होती है. सभी आध्याअत्मिक शक्तियां उसे अपनी अक्षय ऊर्जा से आप्लावित करती हैं. कालांतर में यही अक्षय ऊर्जा आप जैसे शिष्यों को मिलती है. संतों के संत बाबूजी से परिचय करवाने, अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय लीला बहन जी,
      आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ । आपका कथन ही
      इस लेख का सार है की सभी आध्याअत्मिक शक्तियां ऐसे संतों को अपनी
      अक्षय ऊर्जा से आप्लावित करती हैं. कालांतर में यही अक्षय ऊर्जा आप जैसे
      शिष्यों को मिलती है । मेरा व्यक्तिगत अनुभव आपने उसकी कहानी में पढ़ा
      परन्तु रोजमर्रा की जिंदगी में बाबूजी की कृपा से ऐसे कई और भी चमत्कार हो चुके हैं ।

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