कविता

छलावा…..

जीवन !
एक छलावे से ज्यादा
और कुछ नहीं

सच्चाई तो मौत में है
जो सबको
एक न एक दिन आनी है

मृगतृष्णा सी ये जिंदगी
इतना लुभाती है हर किसी को
प्रत्येक जीव
आकर्षित है जीवन के प्रति

ये भ्रम
जिंदगी साथ रहेगी हरदम
एक छलावा मात्र है

और इसी भुलाबे में इंसान
अच्छे बुरे
और न जाने कितने
धर्म अधर्म जैसे कर्म कर जाता है

और जिंदगीे के मोह बंधन में
बंधता चला जाता है

पर !
हकीकत तो ये है
जिस मौत से इंसान
जीवन भर डरता ही रहता है

वो तो एक दिन आती है
लेकिन ये जिंदगी हर दिन
न जाने कितनी मौते मारा करती है

इतने दर्द
इतनी कराह और इतने गम
भर देती है जिंदगी में

नाममात्र की थोड़ी सी खुशियां
उसे ढाक नहीं पाती है

जीवन !
छलावे से ज्यादा और कुछ नहीं ।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- bablisinha911@gmail.com