गीतिका/ग़ज़ल

शायरी मिल गई

तुमसे मिलकर मुझे यों ख़ुशी मिल गई.
ज़िंदगी को नई जिंदगी मिल गई.

मुझको ऐसा लगा इक ख़जाना मिला,
वर्षों पहले की जब डायरी मिल गई.

प्यास अधरों की जल से नहीं बुझ सकी,
वो बुझी जब उन्हें बाँसुरी मिल गई.

कितने लोगों से मिलते-मिलाते हुये,
अपने सागर से जाकर नदी मिल गई.

एक दिन गाँव बेटे-बहू आ गये,
बूढ़ी आँखों को फिर रौशनी मिल गई.

राह हम चैत की देखते रह गये,
हमसे पहले उन्हें जनवरी मिल गई.

“वक़्त” की चाह थी पर न उसने दिया,
भेंट में हाँ उसी से “घड़ी” मिल गई.

बाप की मौत का ग़म, ख़ुशी भी उसे,
उसको उसकी जगह नौकरी मिल गई.

देर तो हो गई थी पहुँचने में पर,
देवता की मुझे आरती मिल गई.

कैसे कह दूँ बिना कुछ दिये वो गया,
वो गया तो मुझे शायरी मिल गई.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674