तुम मुझे बुलाओ, मैं तुम्हें बुलाऊँ,
समारोह को सबसे ऊंचा दिखाऊँ।
खिंचवाकर दो चार फ़ोटो हमारे,
जोर शोर से अखबार में छपवाऊँ।
मैं तुम्हें बुलाऊँ, तुम मुझे बुलवा लो,
अपने बैनर नीचे कार्यक्रम करवा लो।
दौड़े चले आएंगे नए नए कवि मंच पर,
सोचो मत बस तुम इश्तिहार छपवा लो।
दर्शक बेशक ना आएं कार्यक्रम में हमारे,
सफलता, विफलता है मीडिया के सहारे।
ये सम्मान समारोह और कवि सम्मेलन,
सच कहूँ कर रहे चंद लोगों के वारे न्यारे।
सुलक्षणा मत खोल पोल इनकी सरेआम,
कुछ लोग करने लगेंगे यहाँ तुम्हें बदनाम।
रोजी रोटी छीन जाएगी इन गरीबों की,
आएगा तुम पर भूखे मारने का इल्जाम।
— डॉ सुलक्षणा