ब्लॉग/परिचर्चा

बिलखते मासूम

अक्सर देखता हूँ ए महेश,
सुबह सुबह पीठ पर बोरी लटकाए हुए बच्चे
2 टूक रोटी के लिए तरसाये हुए बच्चे
जिन्हें अब तक यह भी नही पता इस दुनिया मे क्यों आये
वो गरीब लाचार हालात के ठुकराए हुए बच्चे…
सच मे दिल को कुछ होता है देखते हुए कि ऐसे लाखों करोड़ों बच्चे सड़कों पर कूड़ा उठाने को मजबूर हैं, भीख मांगने को मजबूर हैं। बचपन क्या होता है, शिक्षा क्या होती है पोषण क्या होता है इन सबसे कोसों दूर हैं यह बच्चे।
अब सवाल सिर्फ यही उठता है कि क्या इनके असली दोषी वो नही जिनकी औकात नही इन्हें पालने की फिर भी पैदा करके सड़कों पर छोड़ देते हैं। इन बच्चों का क्या दोष कि यह दुनिया मे आये????
अब अगर समाज की बात करें तो कहने में यही आता है कि बच्चे भगवान की देन हैं। मगर व्यवहारिक रूप से ऐसा नही है। ठीक है विवाह किया। क्योंकि वो आपकी जरूरत थी और किसी अन्य को भी जिंदगी में लाकर आपने अपना हमसफर बनाया। मगर बच्चे… बच्चे जो अभी नही आये उन्हें इस दुनिया मे लाकर आप कौन सा उद्देश्य सिद्ध कर रहे हैं। ऐसा नही की आपको अपनी हैसियत नही पतं आपको पता है आप अपना पेट नही भर सकते तो बच्चों का कहां से भरेंगे फिर भी आपने बच्चे पैदा किये आखिर क्यों? कहीं या कमाने का जरिया तो नही। एक भिखारी बच्चे पैदा करके 2 साल बाद उसे कटोरा देकर सड़क किनारे खड़ा कर देता है तो वो उसका कमाई का साधन बन जाता है। जो बच्चे सुबह से शाम तक कूद बीन रहे है। वो भी अपने पेट से अधिक अपने बाप की दारू का प्रबंध कर रहे हैं।
लिहाजा एज बात तो साफ है कि बच्चों की सड़कों पर भीड़, उनके हाथ मे कटोरा, यह गरीबी का परिणाम नही बल्कि उन बापों की वासना का परिणाम है जिन्हें अपना पेट पालने के लिए मासूम सहारा चाहिए। और ऐसे आदमी को कोई अधिकार नही की बच्चे पैदा करे।

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com