उपन्यास अंश

इंसानियत – एक धर्म ( भाग – तैंतीसवां )

” गलत कह रही है तू बदजात लड़की ! किसी इस्लामी जानकार ने उस क़ानून का इस्तकबाल नहीं किया । खुदा के कहर से डर नाफरमान लड़की ! तुझे इल्म भी है तू क्या फरमा रही है ? खुदा की शान में कोई भी गुस्ताखी यह खुदा का नेक बंदा सहन नहीं कर पायेगा । खुदाई इबारतें जो हमारे कुरान ए पाक में लिखी गयी हैं वो खुदा का हुक्म है इस दुनिया में रहनेवालों के लिए और वही फर्ज है इस दुनिया के हर सच्चे मुसलमान के लिए । हमारे जीने के सलीके हजारों साल पहले खुदावंद करीम अल्लाहताला ने एक पाक किताब में लिख दिया है जिसे हर मुसलमान मरते दम तक मानने की कसमें खाता है । जिससे काफ़िर खौफ खाते हैं और उसको बदलने की मांग करते रहते हैं लेकिन हम यह हरगिज हरगिज नहीं होने देंगे । और अगर खुदा की शान में तूने फिर भी कोई गुस्ताखी जारी रखी तो याद रखना मैं तुम दोनों मियां बीवी को इस्लाम से बेदखल करने का फतवा तो जारी कर ही सकता हूँ । बड़ी आईं सुप्रीम कोर्ट की हिमायती बनने । ” अपनी ही रौ में गुस्से से गरजते हुए बांगी साहब रजिया को अनाप शनाप कहते रहे ।
अब तक असलम खुद को संयत कर चुका था और रजिया की बात सुनकर वह मन ही मन खुश भी हुआ था लेकिन उसे पता था कि उस बेचारी की सही बात का भी ये धर्म के ठेकेदार विरोध करेंगे और बांगी साहब ने वही किया जिसका अंदाजा असलम को पहले से ही था । रहमान चाचा भी बांगी साहब की बात से सहमत दिखे ।
अब असलम ने मोर्चा संभालते हुए बांगी साहब को जवाब देना शुरू किया ” ठीक कहा आपने बांगी साहब ! लेकिन जरा मेरी बात पे भी गौर फरमाइयेगा । बेशक आप हमें इस्लाम से बेदखल कर सकते हैं बांगी साहब ! लेकिन इंसानियत से बेदखल करने वाली ताकत कहाँ से लाओगे ? ”
बिफरते हुए बांगी साहब बोले ” क्या मर्दुदों की तरह इंसानियत ,इंसानियत की रट लगा रखी है । क्या इस्लाम की कोई ताकत नहीं ? ”
असलम मुस्कुराया और उसकी मुकुराहट ने आग में घी का काम किया । उन्हें क्या पता था कि असलम किस मिट्टी का बना हुआ था ?
” रहमान चाचा ! बांगी साहब ! हमने कब कहा कि इस्लाम की कोई ताकत नहीं है ? ” असलम ने मजे लेते हुए हल्के फुल्के ढंग से अपनी बात कहना जारी रखा ” आज दुनिया के 58 मुल्कों में हमारी ही सल्तनत है । हमारा इस्लाम ही सत्ता में है इन मुल्कों में लेकिन क्या आप लोगों ने देखा है उनका हाल जो इन देशों के बाशिंदे हैं ? बांगी मियां ! आप तो ठहरे इस्लाम के सच्चे सिपाही सो मैं आपको तो नहीं कहूंगा टी वी देखने के लिए क्योंकि इस्लाम में तो टी वी देखना भी हराम है लेकिन रहमान चाचा तो अक्सर टी वी में खबरें वगैरह देखते रहते हैं तो उन्हें पता ही होगा कि हमारे इस शांतिप्रिय धर्म की वजह से आज दुनिया के कई मुल्कों में अशांति ,गदर ,मारकाट मची हुई है । हमारा देश जहां मंगल तक पहुंचने में कामयाब हो गया है बहुत से मुस्लिम देश अपने नागरिकों को जरूरत की चीजें भी मुहैया नहीं करा पाते । ”
एक पल के लिए असलम रुका था । उसके रुकते ही रहमान चाचा खटिये से उठने की कोशिश करते हुए बोले ” चलो लड्डन मियां ! इन लौंडों से बहस करना बेकार है । ” लेकिन उनका हाथ पकड़ कर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए असलम ने फिर कुछ कहना शुरू किया ही था कि तभी बांगी मियां चीख पड़े ” अरे असलम मियां ! खुदा के कहर से डरो ! क्यों झूठ बोल रहे हो ? इस्लाम के नाम पर ताने तो ऐसे दे रहे हो जैसे तुम्हारे देश में सबकी सब जरूरतें पूरी हो गयी हैं । ”
” बस बांगी साहब ! यही मानसिकता है तुम्हारे जैसे ढोंगी मुसलमानों की । खुदा का शुक्र है उसने आपके मुंह से सच्चाई कबूल करवा ही दी । ” असलम ने बांगी साहब को टोका था ।
लेकिन उसकी बात समझे बिना ही बांगी साहब असलम की बात सुनकर चौंक पड़े ” क्या मतलब है तुम्हारा ? कैसी सच्चाई ? ”
असलम की मुस्कुराहट गहरी हो गयी थी और एक विशेष अंदाज में बांगी मियां के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ” वो क्या है न बांगी साहब जब मैं आपको सच्चाई बताऊंगा तो आप उससे तुरंत मुकर जाओगे क्योंकि अब बोलने में आप दिमाग का इस्तेमाल करोगे जिसका इस्तेमाल आपने कुछ देर पहले थोड़े समय के लिए बंद कर दिया था । और ये सच्चाई है कि जब जब इंसान बोलते हुए अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करता उसके दिल की बात उसके होठों पर आ ही जाती है , सुना आपने ! दिल की बात होठों पर आ ही जाती है और यही दिल की बात आपके होंठों पर आ ही गयी । आपने कहा ‘ इस्लाम के नाम पर ताने तो ऐसे दे रहे हो जैसे तुम्हारे देश में सबकी सब जरूरतें पूरी हो गयी हैं ‘ क्या आप बता सकते हैं यहां तुम्हारे देश का क्या मतलब है ? क्या यह देश आपका नहीं है ? अरे कैसी दीनी तालीम आपने पाई है और कैसी दीनी तालीम आप मदरसे में तालीम हासिल करने आये मोमिनों को आप देते होंगे ? आपके अल्फाज सारी सच्चाई बयां कर रहे हैं बांगी साहब ! जब आप जैसा पढ़ा लिखा दीनी तालीम हासिल शख्स अपने मादरेवतन को अपना कहने से परहेज करता है तो फिर इस्लाम पर शक होता है । लेकिन गलत इस्लाम नहीं गलत आप हैं बांगी साहब ! गलत आप हैं । इस्लाम आपस में मोहब्बत का पैगाम है , इस्लाम दुनिया में अमन और भाईचारे का नाम है लेकिन तुम्हारे जैसे इस्लाम के चंद रहबरों ने इस्लाम को पूरी दुनिया में रुसवा करने का काम किया है और कर रहे हैं । मुझे फख्र है खुद पर बांगी साहब कि मैं भी एक मुस्लिम हूँ लेकिन आप की तरह नहीं । सिर्फ चेहरे पर नूर के नाम पर दाढ़ी रख लेने से नूर नहीं आ जाता है । उसके लिए आपको खुदावंद करीम के बताए रास्ते पर चलना होता है । इस्लाम में कहां लिखा है कि सजदा करना गुनाह है ? अगर गुनाह नहीं है सजदे करना तो फिर अपने मादरेवतन का सजदा करना इस्लाम में कैसे गुनाह हो गया ? क्या यह गुनाह इसलिए है क्योंकि हमारे देश का नाम हिंदुस्तान या भारत है और आपकी नजरों में जो काफ़िर हैं वो अपने वतन की पूजा करते हैं । कुछ मुस्लिम विद्वानों ने मुल्क में इस्लाम की मिट्टी और पलीत की जब उन्होंने बेकार की जिद दिखाई । एक बहुत बड़े और बहुत मशहूर इस्लामी शख्सियत ने अपने मादरेवतन को सजदा करने के सरकार के सुझाव का मुखालफत यह कहकर किया था कि ‘ यह हमारे देश की संविधान में कहीं नहीं लिखा है । ‘ बहुत सही कहा था उन साहब ने लेकिन मैं पुछता हूं क्या आप सभी काम संविधान के दायरे में ही करते हो ? नहीं ! संविधान के नाम पर आप ‘ एक देश एक कानून ‘ का समर्थन क्यों नहीं करते ? आप चार चार शादियां करते हैं ,कहते हैं इस्लाम में जायज है हालांकि यह भी आप लोग सरासर झूठ बोलते हैं चार शादियां इस्लाम में जायज हैं लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं , तब तो आप ये नहीं कहते कि हम एक से ज्यादा शादी नहीं करेंगे क्योंकि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता । अभी जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मसले पर अपना फैसला सुनाया तो हमारे देश के सभी हिस्सों से मुस्लिम बहनों ने कोर्ट के इस फैसले का जी खोलकर इस्तकबाल किया । अगर किसी ने देश के सबसे बड़े कोर्ट के फैसले से भी अपनी रजामंदी नहीं दर्शायी तो वो थे चंद गिने हुए आप जैसे इस्लाम के ठेकेदार ।
मैं पुछता हूँ …..” कहते हुए असलम थोड़ी देर के लिए रुका । अचानक खांसी आ जाने की वजह से उसकी बात अधुरी रह गयी । रजिया तेजी से पानी लाने के लिए घर में चली गयी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

8 thoughts on “इंसानियत – एक धर्म ( भाग – तैंतीसवां )

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, इस कड़ी की महफिल को तो असलम ने ही लूट लिया. सबसे पहले तो बांगी साहब द्वारा अपनी पत्नि की बेइज्जती वह बर्दाश्त नहीं कर सका, जो काबिलेतारीफ़ है, फिर इंसानियत की इतनी अप्रतिम वकालत और इस्लाम का असली अर्थ, सब लाजवाब लगा. लाजवाब लगी आपकी भाषा, जो हर पात्र की मानसिकता के अनुसार चलती है. तीन तलाक के हालिया फैसले को समेटना भी बहुत अच्छा लगा. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! इस्लाम के नाम पर अति करनेवालों से खुद इस्लाम के नुमाइंदे ज्यादा पीड़ित हैं । दुनिया में इस्लाम बनाम अन्य के मुकाबले इस्लाम बनाम इस्लाम में ही मौतें व हिंसा अधिक होती है । असलम जैसे कुछ चरित्र इस कमी को बाकायदा समझते भी हैं और इन बुराइयों के विरोध भी करते हैं । यह कड़ी भी आपको अच्छी लगी जानकर बहुत प्रसन्नता हुई । सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब, भाईसाहब ! आपने असलम के मुंह से जो कहलवाया है वह हम सबके दिल की आवाज़ है. अगर कठमुल्ले मुसलमानों में जिनकी संख्या बहुत है, ऐसा अलगाववाद न होता तो देश बहुत तरक्की कर जाता.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब ! आपको कहानी पसंद आई जानकर खुशी हुई । सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।

  • रविन्दर सूदन

    प्रिय राजकुमार भाई साहब जी,
    आपने असलम के मुंह से वो सब कहलवा दिया जो आज हमारे देश में अधिकतर
    एक धर्म वाले सोचते हैं । पानी और हवा का धर्म होता है बहना, यदि वह बहना
    बंद कर दे तो पानी या हवा नहीं । सूरज का धर्म है रौशनी देना, यदि वो रौशनी
    ना दे तो ? स्त्री का धर्म है अपने पति के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलना ,
    सुख दुःख में उसका साथ देना । ठेकेदारों ने जो धर्म तलाशा, उसने नफरत फैलाई,
    प्यार नहीं । बहुत जबरदस्त कड़ी, कमाल कर दिया ।

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय रविंदर भाई जी ! आपने अपनी शानदार प्रतिक्रिया में इतने अच्छे उदाहरण देकर प्रतिक्रिया में चार चांद लगा दिए हैं । आपने सही फरमाया है धर्म के ठेकेदारों ने धर्म का इस्तेमाल हमेशा अपने अपने फायदे के लिए किया है जबकि सभी धर्मों का एक ही मकसद है भाईचारे और इंसानियत से रहना । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया द्वारा कड़ी की विषयवस्तु से सहमति जताने के लिए आपका धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राजकुमार भाई , असलम की ओर से कहा गिया एक एक शब्द आप का लोगों को सन्देश है, किसी एक पर भी असर हो जाए तो अप का लिखना कामयाब है .

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब !आपने सही फरमाया है अगर किसी एक को भी यह संदेश समझ में आ गया वह इसके मुताबिक ढल गया तो सचमुच यह लेखन सार्थक हो जाएगा । हमेशा की तरह सुंदर सार्थक व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

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