गीतिका/ग़ज़ल

आसमां तक हलाल रखा है

दर्द ए बेहिसाब को कुछ यूं सम्भाल रखा है
लबों पे हँसी और आँखों मे सवाल रखा है ।।

बात इतनी सी ही हो हर बात बड़ी होती है।
ज़ुबाँ की एक धार ही ये सारा बवाल रखा है।।

रूह के रिश्तों में जिस्मों की ज़रूरत कब है।
इश्क़ अय्याश नही जो इतना उछाल रखा है।।

मन के पंछी के यहाँ पर काट दिए जाते है।
ज़मीन वालों ने आसमां तक हलाल रखा है।।

सिर्फ इंसानियत काफ़ी इंसा को समझने को।
प्यार की राह में ही हर हुस्न ओ जमाल रखा है।।

प्रियंवदा

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।