गीतिका/ग़ज़ल

तन्हाई आई है

निगाहों धुंध बेहद है घनी बदली सी छाई है
दिल में दस्तक देती फिर से तन्हाई आई है ।।

आब आँखों में भरा औ प्यास कि बुझती नही
जाने किस डगर चलके ये तेरी याद आई है ।।

छलछला उठी है माथे बूंदें सिसकती सी हुई
कुछ बरस पड़ने को अब सांसें हुई पुरवाई है ।।

नींद छलती आँख को ख्वाब खलबल कर रहे
हथेलियों पर बेचैनियों की पकड़ी रोशनाई है ।।

करवटों पर शेर मतले चादरों पे मचली ग़ज़ल
भीगते तकियों की कोरों बैठी मिली रुबाई है ।।

जोग बोले है कोई रोग कहे नाड़ी टटोलकर
उसी दिन जब से नज़र तेरी नज़र टकराई है ।।
प्रियंवदा अवस्थी©

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।