गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इन आंसुओं का मोल चुकाया न जाएगा
अब हमसे भी कोई गीत गाया न जाएगा ।

जी चाहता है अश्क ये पलकों से चुरा लूं
इस दर्द ए दिल का बोझ उठाया न जाएगा।

सुन दर्द तुम्हें ही नहीँ हमने भी ज़ख़्म खाए
दिल चीर के बस हमसे दिखाया न जाएगा।

अहसास हो तुम्हें ये मुमकिन तो है हुज़ूर
कभी अपनी जुबां से दर्द बताया न जाएगा ।

अब नींद कहां हमको यूं होने हैं रतजगे
आंखों को आज हमसे सुलाया न जाएगा ।

हम सोचते हैं ‘जानिब’ तुम्हारा दर्द बांट लें
सुनो ये दर्द तेरा हमसे भुलाया न जाएगा ।

— पावनी दीक्षित ‘जानिब’

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर !

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