कविता

याद है , प्रेम के किन्हीं क्षणों में

याद है ,
प्रेम के किन्हीं क्षणों में
तुमने कहा था
चूंकि ,
खूँ का रंग लाल है,
ख़तरे का रंग लाल है,
देवी माँ के चुनर का रंग लाल है,
ताजे जगे सूरज का रंग लाल है,
तुम्हारे गालों पे उतरे हया का रंग लाल है,
और तुम्हारे सहज कुसुमित होंठों का रंग लाल है
इसीलिए इश्क का रंग भी
लाल है।
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आज जब
उदासी के इन क्षणों में
शब्द कम पड़ने लगे हैं,
और शब्दकोष भावनाओं से भरने लगा है,
मैंने एक डायरी ख़रीद ली है ,
तुम्हारे रंग की,
इश्क के रंग की,
लाल रंग की,

पहले पन्ने पे ,
अपने इष्ट का नाम लिख दिया है
उससे जरा नीचे , हल्के बाएं
तुम्हारा नाम भी उकेर दिया है।
समकक्ष कर दिया है , तुम्हेँ अपने इष्ट के
आखिर वो भी तो नही मिलते
मेरे लाख प्रार्थनाओं के बावजूद।

वायदे अनुसार ,
दूसरे पन्ने पे,
तुम्हें लेके एक नज्म लिख रहा हूँ,
आसार पूरे हैं,
वो अधूरा ही रहेगा।
अथाह सागर के
एक पंक्ति मात्र को लिखना
अब मेरे वश का नही ।

अंतिम पृष्ठ पे,
कुछ पुराने रंग-बिरंगे पेंसिलों के सहारे,
उकेर रहा हूँ तुम्हें,
उकरते तस्वीर के साथ
तुम मेरे जैसी दिखती जा रही हो।

काम अच्छा नही हो रहा,
मग़र मैं ख़ुश होने लगा हूँ
तुम्हारा कहा सच होने लगा है
“जो इश्क़ में होते है ,
वो दिखते भी एक जैसे है ,इश्क़ जैसे हैं।
तस्वीर के बहाने ही सही
बरसों बाद हम एक होने लगे हैं।
इश्क़ होने लगे हैं।

पूछोगी नही तुम?
मध्य के पन्नो काे क्या किया है?

मैंने उन पन्नों को अतृप्त छोड़ दिया है,
ताकि तुम कभी आओ
तो तृप्त कर दो।
उन पन्नो को भी
और मेरी आँखों को भी
जो तुम्हारी याद के क्षणों में, एकांत के क्षणों में

निर्झर हो
इश्क़ के रंग की हुई जा रही हैं
लाल रंग की हुई जा रहीं हैं।
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-राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com