लघुकथा

कलियुग

पंडित कमलाकर जी घर से घाट की तरफ बढ़ रहे थे । सुबह की बेला थी । घाट पर नदी में नहा धोकर किनारे बने मंदिर में पूजा पाठ करना उनकी दैनिक दिनचर्या थी । घाट के सामने ही कलुआ हरिजन की कच्ची झोंपड़ी थी । पंड़ित जी घाट पर पहुंचे ही थे कि अचानक कलुआ हरिजन उनके सामने आ गया और फिर अचानक पंडित जी पर नजर पड़ते ही चौंक पड़ा और झुक कर उनका अभिवादन किया ” पंडित जी पाँय लागूं । ”
” जय हो !. ” अनमने मन से कहकर पंडितजी घाट की सीढ़ियां उतरने लगे । सीढियां उतरते हुए पंडित जी का बड़बड़ाना जारी था ” राम राम राम राम ! घोर कलयुग आ गया है । अब ई हरिजन लोग तो सिर पर नाचने लगे हैं । बताओ ! हम नहीं देखते तो हमसे टकरा ही जाता । हमको भी भ्रष्ट कर देता । राम हमको बचा लिए । ”
थोड़ी ही देर बाद पंडितजी नहाकर नदी से बाहर निकले । गीली धोती उठाने के लिए झुकते हुए उनका संतुलन खो गया और वह तेज चीख के साथ सीढ़ियों पर ही गिर पड़े । कमर में चोट गहरी लग गयी थी । उनकी चीख सुनकर कलुआ हरिजन भागते हुए आया । उसे देखते ही पंडितजी दर्द से कराहते हुए चीख पड़े ” अरे कलुआ ! अच्छा हुआ तू आ गया । ”
थोड़ी ही देर बाद पंडितजी कलुआ के कंधे पर अपनी बाहें डाले दर्द से कराहते हुए अपने घर की तरफ जा रहे थे ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

6 thoughts on “कलियुग

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा हा… बहुत सुन्दर !

    • राजकुमार कांदु

      धन्यवाद आदरणीय !

  • राजकुमार जी
    ये बात सिर्फ रूढ़िवाद या जात पात की नहीं बल्कि मानसिकता की है.
    अपने को श्रेष्ठ और दूसरों को नीच समझना और काम पड़ने पर दोगलापन अपना लेना.
    इसी तुछ मानसिकता से निजात पाना है.

    एक और उत्तम रचना के लिए बधाई व धन्यवाद

    • राजकुमार कांदु

      प्रिय अंकित जी ! आपने सही कहा । यह मानसिकता की ही बात है और साथ ही अवसरवादिता की भी । जरूरत पड़ने पर पंडितजी उसी कलुआ के कंधे का सहारा लेकर घर गए जिसे छूना भी वो पाप समझ रहे थे । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! यह स्थिति आज भी उत्तर भारत के कई गांवों में बरकरार है । लेकिन समय का चक्कर फिरता है तो जरूरत पड़ने पर हरिजन अछूत नहीं रहता । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, यथार्थ से परिचित कराने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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