हास्य व्यंग्य

व्यंग्य : इच्छाधारी हनीप्रीत की तलाश

टी. वी. में अखबारों में नेताओं के नारों में गाँव-गली-गलियारों में सब जगह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख फर्जी बाबा राम रहीम गुरमीत सिंह की शिष्या उर्फ दत्तक बेटी हनीप्रीत का ही जिक्र है। मोहल्ले के पांच वर्ष के बच्चे से लेकर अस्सी वर्षीय बुजुर्ग रामू काका जिनके मुंह में दांत नहीं, पेट में आंत नहीं फिर भी मुंह पर सवाल है – बेटा ! हनीप्रीत मिली क्या ? हनीप्रीत जैसे हनीप्रीत न होकर कालाधन हो। जिसे हर आड़ा-टेड़ा नेता पकड़कर लाने का दावा करता है। अब तो नेताओं को कालाधन लाऊंगा कि जगह बदलकर कहना चाहिए – भाईयों और बहनों ! मैं हनीप्रीत को लाऊंगा। जो हनीप्रीत को ढूंढकर लाए, वो ही सच्चा नेता होए।
एक जमाना था जब स्त्रीलिंग शब्द पुलिस का घनिष्ठ संबंध समाज के प्रतिष्ठित डॉन व माफिया के साथ जोड़कर देखा जाता था। अलबत्ता यह कहा जाता था – डॉन को पकड़ना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। डॉन के पीछे ग्यारह मुल्कों की पुलिस है। अब लगता है ये डॉयलॉग बदलकर ऐसे पेश किया जाना चाहिए – हनीप्रीत को पकड़ना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। हनीप्रीत का पीछा दर्जन भर राज्यों की पुलिस कर रही है। हनीप्रीत हुस्न की मल्लिका है। जिसकी शराबी आंखें किसी को भी धोखा दे सकती है। जिसके गुलाबी गाल किसी को भी मोहित कर सकते है। जिसके कमल की पखुंडियों जैसे होंठ किसी को भी विचलित कर सकते है। लहराते काले केशों की घनघोर घटाएं जिसकी छांव में कोई भी अपना अस्तित्व भूलकर खो सकता है।
हनीप्रीत की हवा कितनों को ही आसाराम बनने पर विवश कर सकती है। ऐसी आकर्षक, सुन्दर, मनमोहनी, रुपवती हनीप्रीत की भला किसको तलाश नहीं होगी ! पर मिलती ही नही है ससुरी ! मिलती है तो बाबाओं को। यह भी कितनी अजब-गजब बात है प्राचीन समय में बाबा, ऋषि-मुनि नवयुवतियों से दूर रहकर तपस्या करते थे। लेकिन आज जमाना बदल गया है। आज तो कोई मामूली से मामूली बाबा भी बिना नवयुवती के साथ अपना दरबार चलाना पसंद नहीं करता। अग्रेजी शब्द हनी का हिन्दी में अर्थ होता है – शहद और प्रीत यानि प्रेम। मतलब प्रेम का शहद। जिसे कौन नहीं चखना चाहेगा ? मुझे लगता है हनीप्रीत के पीछे पुलिस को न लगाकर एंटी रोमियो स्कॉर्ड के नाम पर पकड़े गये सड़कछाप मजनूंओं के गिरोह को लगाना चाहिए। और साथ में यह स्कीम रख देनी चाहिए कि पकड कर लाने वाले को हनीप्रीत के साथ पांच घंटे बिताने का सुअवसर दिया जायेगा। अगर सौभाग्यवश मेरी इस बात का मान रखते हुए सरकार यह ऑफर अमल में लाती है तो कसम से सबसे पहले मैं ही भागूंगा हनीप्रीत को पकड़ने के लिए।
हनीप्रीत इच्छाधारी नागिन की तरह रंग-रुप बदलकर पुलिस की आंखों में चकमा दे रही है। बरहाल, स्थिति को देखकर लगता है हनीप्रीत जैसा राष्ट्रीय मुद्दा शांतिपूर्वक हल होने से देश की समस्त समस्याओं का समाधान हो जायेगा ! हनीप्रीत आते ही जैसे भारत किसी मिसाइल लांच के सफल प्रक्षेपण की भांति विश्व कीर्तिमान रच लेगा ! हनीप्रीत मिलते ही जैसे फर्जी बाबाओं को जन्म देने वाले रक्तबीज का सदैव के लिए अंत हो जायेगा ! आज पुलिस के साथ-साथ मीडिया की मोस्ट डिमांडेड गर्ल बन चुकी है हनीप्रीत। कुछेक मीड़िया के चैनल वाले बाबा गुरमीत सिंह की गिरफ्तारी से लेकर अब तक हनीप्रीत के पूरे खानदान का पोस्टमार्टम कर चुके है। यहां तक की उन्होंने तो पड़ौसियों को भी नहीं छोड़ा। आज हनीप्रीत और हनीसिंह का दौर चल रहा है। बाबाओं को हनी की तलब है। अधिकांश बाबाओं के मुंह में राम और बगल में कोई न कोई हनीप्रीत है। सही है आज के इस दौर में बिना हनीप्रीत के भला कोई बाबा कब तक रहे ?

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com

One thought on “व्यंग्य : इच्छाधारी हनीप्रीत की तलाश

  • डॉ रमा द्विवेदी

    वाह ! क्या बात है ? बहुत शानदार हनीप्रीत का वर्णन किया है |

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