मुक्तक/दोहा

“साली रस की खान”

सम्बन्धों का है यहाँ, अजब-गजब संसार।
घरवाली से भी अधिक, साली से है प्यार।।

अपनी बहनों से नहीं, करते प्यार-अपार।
किन्तु सालियों से करें, प्यारभरी मनुहार।।

जीजा-साली का बहुत, होता नाता खास।
जिनके साली हैं नहीं, वो हैं बहुत उदास।।

साली से है अनुराग है, सालों से ससुराल।
साली जीजा का रखे, सबसे ज्यादा ख्याल।।

साली जीजा के लिए, होती है अनुकूल।
लगती उसकी गालियाँ, जीजा जी को फूल।।

साली के बिन तो लगे, सूना सब संसार।
सम्बन्धों का सालियाँ, होती हैं आधार।।

छोटी हो चाहे बड़ी, साली रस की खान।
इसीलिए तो सब करें, साली का गुणगान।।

साली है ऐसा सुमन, जिसमें है मकरन्द।
साली की तो गन्ध से, मिल जाता आनन्द।।

जब करती हैं सालियाँ, खुलकर हँसी मजाक।
घरवाली यह देखकर, रह जाती आवाक।।

आधी घरवाली नहीं, कहना इसको मित्र।
रखना हरदम चाहिए, आपना साफ चरित्र।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है