कविता

बेटियाँ

फूल – कलियों – सी
होती हैं बेटियाँ
चाँद की चांदनी – सी
होती हैं बेटियाँ
मत तोडो इन्हें
मत घूरो इन्हें
नजर लग जाती है
मुरझा जाती हैं
बड़ी कोमल होती हैं
बेटियाँ ||

प्यार – दुलार – स्नेह
की भूखीं होती हैं
मरूस्थल में भी
बड़ी हो जाती हैं
भार नहीं होती हैं
बेटियाँ ||

मिश्री की ढली – सी
मीठी होती हैं
चंदन में छुपी
शीतलता – सी
प्यारी – प्यारी होती हैं
बेटियाँ ||

जल – जंगल में
धरती और गगन में
पीछे नहीं रहीं
हिमालय के शिखर पर
परचम लहरा रहीं
बेटियाँ ||

मुल्कों की सीमा तोड़ के
परम्पराओं की बेडियां खोल के
नित नये कीर्तिमान रच रहीं
स्वदेश को मेडल दिला रहीं
निज मातु – पिता और गॉव – शहर का
नाम रोशन कर रहीं
बेटियाँ ||

ऐ मनुज आँखें खोल
स्व आत्मा को तोल
मत शैतानी – हैवानी
नजर से इन्हें देख
बेटों की लालच में
मत बेटियों की
चिता पर रोटियां सेक
बेटा तेरा निकल सकता आवारा
पर बेटियाँ बन जाती हैं
बुढापे का सहारा ||

– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
गॉव रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद-आगरा ,283111

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111