लघुकथा

यह मेरा घर

”सुलू,मेरी नीली शर्ट कहाँ रखी है ?”बाथरूम से निकलते हुए राज माहेश्वरी ने पत्नी को आवाज़ लगायी और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े बाल काढ़ने लगे !
“बेड पर देखिये आपकी शर्ट,ट्राउज़र,पर्स,मोबाईल और रुमाल सब वहीँ रखें हैं !”आलू का परांठा तवे पर पलटते हुए रसोई से ही सुलोचना ने जवाब दिया !
तब तक छोटे नवाब सिद्धार्थ की आवाज़ कानों में पड़ी,”मॉम, मेरी स्पोर्ट्स की जुराब नहीं मिल रहीं,माँ आज मैच है,प्लीज़ माँ….. “
“अपने कबर्ड की लेफ्ट ड्राअर में देख बेटे,तुम्हारी सारी जुराबें वही रखती हूँ तुम्हे कितनी बार कहा रात को ड्रैस निकाल कर और बैग लगा कर सोया करो।”बात करते जरा ध्यान हटा और भाप से ऊँगली जली सुलु की !
“माँ,पहले मेरी चोटी बना दो ना,बस आने वाली है “अब मिष्ठी की गिड़िड़ाहट थी !
“आती हूँ “कहते हुए सुलु ने गैस बंद की तीनो के टिफिनबॉक्स हाथों में लिए,सुलु ने टेबल पर रख कंघा हाथ में लिए सारा गुस्सा मिष्ठी के बालों पर उतरा,”मिष्ठी तू बड़ी हो गयी है अब अपनी चोटी खुद बनाना सीख या बाल कटवा ले,मेरे भी दो ही हाथ हैं।” बाल खिंचने का दर्द भी नहीं कह सकी और जब तक सुलोचना हाथ धोकर आयी तीनो आधा-अधूरा नाश्ता कर जा चुके थे !
टेबल पर नज़र गयी तो कुढ़ कर रह गयीं !मियां जी ने दूध के कुछ घूँट ही पिए होंगे,तीन चौथाई गिलास में था ! सिद्ध ने भी आधे से ज्यादा ऑमलेट प्लेट में छोड़ा हुआ था ! पसीने से लथपथ सुलु धम्म से उसी कुर्सी पर बैठ गयी ! माथे से गिरता हुआ पसीना,नाक के रास्ते होते होंटो तक आ गया 

और पोंछते हुए अपना खारापन जीभ को चखा गया !
“मेरी ज़िंदगी में भी कितना खारापन आ गया “सोच रहीं थी सुलु ! सुबह पांच बजे से रात ग्यारह बजे तक चकरघिन्नी सी सबके काम,चिंता करती भागती रहती हैं और किसी को मेरा जन्मदिन भी याद नहीं रहा ? मैं तो अपने परिवार क्या मित्रों को भी सबसे पहले विश करती हूँ,किसी का भूलती नहीं ! और मेरा ? ये मेरा घर है ?
अनमने होकर घर के काम निबटा थोड़ी देर कमर सीधी करने को लेट गयी सुलु की आँख लग गयी !”ट्रिन  ट्रिन ट्रिन …..कॉल बेल की आवज़ से नींद टूटी तो ढाई बज गए थे !
दरवाज़ा खोलते ही तीनों ने समवेत स्वर में “हैप्पी बर्थडे टू यू  गाना गाते हुए प्रवेश किया, राज के हाथ में साड़ी का पैकेट, मिष्ठी के हाथ में उसकी पसंद के पीले गुलाब और सिद्ध के हाथ में खुद का बने बर्थडे कार्ड !
“अब सब जल्दी तैयार हो जाओ, लंच बाहर करेंगे फिर चार बजे “न्यूटन “दखेंगे और?”
“अब से हम अपनी सारी तैयारी रात को ही करेंगे” तीनो ने एकसाथ कहा !”
सुलु की आश्वस्त नज़रें मानो कह रही थीं ये मेरा घर है !

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !