महाशाप…
किसी ऋषि ने
जाने किस युग में
किस रोष में
दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त
जलते रहने का
दूसरों को उजाला देने का,
दूसरों को उजाला देने का,
बेचारा सूरज
अवश्य होत होगा निढाल
थक कर बैठने का
करता होगा प्रयास
बिना जले
बस कुछ पल
बहुत चाहता होगा उसका मन,
पर शापमुक्त होने का उपाय
ऋषि से बताया न होगा,
युग सदी बीते, बदले
पर वह
फ़र्ज़ से नही भटका
न कभी अटका
हमें जीवन और
ज्योति दे रहा है
अपना शाप जी रहा है।
कभी-कभी किसी का शाप
दूसरों का जीवन होता है।
– जेन्नी शबनम (7. 10. 2017)
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