लघुकथा

स्वार्थ से रिश्ते

पिछले कई दिनों से शहर के अलग अलग जगहों पर स्वच्छता अभियान चल रहा था… आज सुबह भी मंत्री जी अपने टीम के साथ, वार्ड पार्षद के साथ भी कुछ लोग आने ही वाले थे, अखबार मीडिया की टीम , युवाओं की टोली और अनेक संगठन-संस्था के सदस्य , स्थानीय लोग अभियान स्थल पर पहुंचे और स्थल से कचरा ही गायब… खलबली-भदगड़ मच गई…
-हद है! कैसे कचरा उठ सकता है… नगर निगम वालों को कुछ तो सोचना चाहिये था… अब मंत्री जी आएंगे तो क्या होगा?
-मंत्री जी के आगमन की बात सुन, घबराहट में ऐसा हो गया होगा…
-अरे फोन करो… फोन करो…
ट्रिन ट्रिन
-हेलो!
-इतनी सुबह सवेरे ?
-आपने बिना मंत्री जी के आये कचरा कैसे उठवा लिया?
-हमें भी तो जबाब देना पड़ता है!
-भेजवाईये आयोजन-स्थल पर कचरा।।
-ऐसा कैसे हो सकता है? तिहरा मेहनताना देना होगा…
-क्यों?
-कचरा उठाया मजदूर , फिर लाकर गिरायेगा , फिर उठाएगा
-वो सब हमलोग बाद में मिल बैठ सलटा लेंगे… आखिर हमलोग मित्र हैं… दांत नहीं पीसना मजबूरी थी
-आपकी खुशी में ही हमारी खुशी है…

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ