लघुकथा

“समझ”

-एक्सपायरिंग डेट हो गई हैं आप अम्मा जी”
-चल इसी बात पर कुछ चटपटा बना खिला” खिलखिलाते हुए पचासी साल की सास और अड़तीस-चालीस साल की बहू चुहल कर रही थी
-आज मुझे *एक दीया शहीदों के नाम* का जलाने जाना है… काश ! आप भी…”
-पोते की शादी चैन से देख लेने दे
-यानि अभी और भी पंद्रह-बीस साल…”
-और नहीं तो क्या… क्या कभी सबके श्राप फलित होते देखी है…”
-आपके पहले मैं या मेरे पहले आप टिकट कटवाएँगे…”
-संग-संग चलेंगे… समय के साथ खाद-पानी-हवा का असर होता है”
दोनों की उन्मुक्त हँसी गूंज गई

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ