कहानी

आसमान भी रोता होगा

सुविधा नन्हें सुजान को गोद में लिए कमरे की खिड़की से एकटक आसमान को निहार रही थी कि अचानक एक तारा टूटकर शून्य में विलीन हो गया. घबराकर सुविधा ने बेटे को अपनी बाँहों में भींच लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगी.

माँ के अचानक फोन करके बताने पर कि उसके पिताजी की तबियत अचानक बिगड़ गई है और वो अस्पताल में भर्ती हैं, तो अपने कार्यालय से एक सप्ताह की छुट्टी लेकर सुविधा इंदौर अपने पिता को देखने चली आई थी. दो दिन में पिताजी की तबियत में तो सुधार था लेकिन सुजान को कल से हल्का सा बुखार आ गया था. एक तो ‘बेबी सिटिंग सेंटर’ भेजने के बाद वो कुछ कमज़ोर भी हो गया है, ऊपर से बुखार…अतः माँ के कहने पर वो सुजान को शिशु-विशेषज्ञ के पास ले गई. डॉक्टर ने बच्चे की नब्ज़ देखकर सुविधा से पूछा-
-बच्चे को कब से बुखार है?
“कल से ही सर!”
-पहले भी इसे बुखार आता रहता है क्या… और इसके अलावा कोई अन्य समस्या तो नहीं इसके साथ?
“नहीं, बुखार तो कभी नहीं आता सर, लेकिन जब छुट्टी के दो दिन घर पर रहता है तो बहुत अनमना सा रहता है और दिन में ठीक से सोता भी नहीं है. मैं नौकरीपेशा हूँ और अपने पति के साथ मुंबई की एक सोसायटी में रहती हूँ. सुजान सुबह नौ बजे से शाम आठ बजे तक ‘बेबी केयर सेंटर’ में रहता है” सुविधा ने अपने और सुजान के बारे में पूरी जानकारी देते हुए कहा.
-अच्छा, इसे बेबी सेंटर में रहते हुए कितना समय हो गया है?
“लगभग एक साल हो चुका है सर, यह एक साल का था जब इसे हमने वहाँ भरती किया था. उससे पहले हम इंदौर में ही रहते थे और सुजान की देखभाल दादा-दादी ही करते थे”.
-क्या यह जन्म से ही कमज़ोर है?
“नहीं सर, जब से इसे शिशु सेंटर भेजना शुरू किया है तब से धीरे धीरे यह कमज़ोर होता गया है. लेकिन हमने इसपर गौर इसलिए नहीं किया कि बढ़ते हुए बच्चों के लिए यह स्वाभाविक क्रिया होगी”.
-लेकिन उम्र के हिसाब से इसका सही विकास नहीं हो रहा है, आपने कभी ‘बेबी केयर सेंटर’ जाकर इसकी दिनचर्या पर दृष्टिपात किया है?
“सर, सेंटर की संचालक मेरी कालेज के दिनों की विश्वसनीय सहेली तारा है, अतः मैंने शुरुवात में सेंटर की गतिविधियों के बारे में जानकारी लेने के बाद फिर कभी इसकी आवश्यकता नहीं समझी. सेंटर में एक से तीन साल तक के बच्चे ही हैं, उनकी प्रति सप्ताह उनके द्वारा तैनात शिशु रोग विशेषज्ञ से जाँच करवाई जाती है, लेकिन वहाँ के कुछ नियम हैं. बच्चों से हमें दिन में मिलने नहीं दिया जाता क्योंकि दिन में उन्हें स्नान के बाद दूध-भोजन वगैरह देकर सुला दिया जाता है और हाँ… जब भी मुझे कहीं जाना होता है तो मैं दिन में ही सुजान को लेने चली जाती हूँ पर यह मेरी गोद में सोता रहता है और शाम को ही जागता है.
-बस, यहीं कुछ गड़बड़ लगती है…जब बच्चा सेंटर में दोपहर से शाम तक गहरी नींद सोता रहता है तो छुट्टी में घर पर दिन में क्यों नहीं सो पाता?…बच्चे की वहाँ के डॉक्टर की रिपोर्ट है आपके पास?
“यहाँ साथ में तो नहीं ले आई, उसमें सुजान को पूरी तरह स्वस्थ करार दिया हुआ है, लेकिन इन सवालों का बच्चे के बुखार से क्या सम्बन्ध है सर”?
-मुझे शंका है कि बच्चे को भोजन में कोई नशे की चीज़ मिलाकर सुला दिया जाता होगा, इसी कारण घर पर वो सो नहीं पाता होगा, इसकी शारीरिक कमजोरी का कारण भी यही हो सकता है. अभी तो मैं इसका बुखार उतरने के लिए दो दिन की दवाई दे देता हूँ लेकिन बच्चे की पूरी जाँच यानी इसके रक्त-परीक्षण के बाद ही सही निर्णय पर पहुँचा जा सकता है.
सुविधा तड़पकर बोली-
“सर, आप इसके रक्त का नमूना लेकर अच्छी तरह पूरी जाँच करके रिपोर्ट बना दीजिये, अगर आपकी शंका सही निकली तो मैं सेंटर पर तो कानूनी कार्रवाही करूँगी और अब सुजान को कभी अपने से दूर नहीं करूँगी”.
सुविधा की अनुमति पाकर डॉक्टर ने सुजान के रक्त का नमूना लिया और अगले दिन रिपोर्ट ले जाने के लिए कहा.
सुविधा शंकाओं के भँवर में डूबती उतराती हुई घर पहुँची.
जैसे तैसे वो दिन गुज़र गया, दवाई से सुजान का बुखार कम हो गया तो उसके मन को कुछ शांति मिली और वो अगले दिन रिपोर्ट लेने डॉक्टर के पास चली गई. डॉक्टर का शक सही था. सुजान के रक्त में नशे की दवा की मात्रा पाई गई थी.
रिपोर्ट देखते ही सुविधा फफककर रो पड़ी. इसका मतलब सेंटर का डॉक्टर भी उनसे मिला हुआ है.
उसे याद आ गया कि जब भी वो दिन में सेंटर से सुजान को लेने जाती थी तो तारा हमेशा अपने दो वर्षीय बच्चे के साथ खेलती हुई मिलती थी और बाकी बच्चे गहरी नींद में सोए हुए मिलते थे. एक बार उसने पूछा भी था-
“तारा, तुम अपने बच्चे को दिन में क्यों नहीं सुलाती”? तो तारा हँसकर कहती-
-सुविधा डियर, मुझे यही तो समय मिलता है न अपने बच्चे के साथ खेलने का…इसे मैं शाम को बाकी बच्चों के उठने के बाद सुलाती हूँ ताकि सबकी देखभाल ठीक से हो सके.
-देखिये, आपको विवेक से काम लेना चाहिए, अच्छा हुआ आप सही समय पर यहाँ पहुँच गईं. मैं १५ दिन की दवाइयाँ दे देता हूँ आपका बच्चा बिलकुल स्वस्थ हो जाएगा. लेकिन १५ दिन बाद फिर निरीक्षण करवाने यहाँ आना पड़ेगा और आगे भी आपको बच्चे की पूरी सावधानी से देखभाल करनी होगी. डॉक्टर ने उसे रोते देखकर कहा.

सुविधा दवाइयाँ लेकर भारी मन से घर पहुँची. माँ के पूछने पर सारी बात बताई लेकिन सुधीर को यह सब फोन पर कैसे बताए? वो तो सारा दोष यह कहकर उसी के माथे मढ़ देगा कि कि मैंने पहले ही कहा था कि बच्चे को ‘बेबी केयर सेंटर’ भेजने का रिस्क मत लो. सोचते-सोचते उसका सिर भारी होने लगा. उसे इस समय सुधीर के साथ की आवश्यकता होने लगी. माँ के बहुत कहने पर दो चार कौर खाना खाया फिर सुजान को दवा देकर उसके साथ ही लेट गई.
विचार थमने का नाम नहीं ले रहे थे और समाधान सूझ नहीं रहा था. सच ही तो कहा था सुधीर ने, तीन साल पहले की ही तो बात है, कितनी सुखी गृहस्थी थी उसकी…
सुधीर और वो इंदौर के एक ही कार्यालय में जॉब करते थे. वहीँ दोनों का एक दूसरे से परिचय हुआ और धीरे-धीरे परिचय प्यार में बदल गया. फिर उनके विवाह में एक ही जाति के होने के कारण कोई बाधा नहीं आई और वो सुधीर के साथ सात फेरे लेकर ससुराल आ गई. सास-ससुर बहुत परिष्कृत विचारों और सरल स्वभाव के थे. एक साल के अन्दर ही वो एक बेटे की माँ बन गई. सुजान सारी सुख-सुविधाओं के बीच दादा-दादी के साए में प्यार दुलार के साथ पलने लगा. अभी वो एक साल का ही हुआ था कि अचानक सुधीर का तबादला कंपनी ने मुम्बई में कर दिया तो सुविधा ने भी आवेदन करके अपना तबादला मुम्बई करवा लिया. तय हुआ कि आवास की व्यवस्था होते ही माँ-पिता को भी मुम्बई बुला लेंगे. कुछ दिन कंपनी द्वारा बुक किये हुए होटल में गुज़ारने के बाद उन्होंने एक उच्चस्तरीय सोसायटी में फ़्लैट किराए पर ले लिया और व्यवस्थित होते ही सुधीर माँ-पिता को लेने गया था लेकिन उन्होंने उसे सदैव सुखी रहने का आशीर्वाद देकर अपना घर और शहर छोड़कर मुम्बई जाने से साफ़ इनकार कर दिया था.

सुधीर ने वापस आकर सारी बात बताते हुए कहा था-
-सुविधा, सुजान को नौकरी के साथ-साथ कैसे सँभाल पाओगी…उचित यही होगा कि तुम नौकरी छोड़ दो. वैसे भी मेरी आय हमारे परिवार के लिए काफी है. हम आराम से अच्छी ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं…
-यह तुम क्या कह रहे हो सुधीर, मैंने दिन रात एक करके यह नौकरी हासिल की है, अब वो ज़माना नहीं रहा कि पत्नी पति की गुलाम बनकर और हर तरह के ज़ुल्म सहकर घर में पड़ी रहे.
“देखो सुविधा मर्द ना तो बच्चे को गर्भ में रखता है, ना ही दूध पिलाता है, वो शारीरिक रूप से भी औरत की अपेक्षा अधिक मज़बूत होता है, तो यदि वो बाहर के काम या नौकरी करे तो यहाँ किसी गुलामी या ज़ुल्म की बात कहाँ से आ जाएगी. यह तो पति-पत्नी के बीच आपसी समझौता है, जिसका पालन करके दोनों पारिवारिक सुख का अनुभव करते हुई सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
-पर सुधीर, यहाँ सब नौकरीपेशा माँ-पिता के बच्चे ‘बेबी केयर सेंटर’ में पल रहे है, हम भी सुजान को वहीँ भरती कर देंगे. वो सेंटर मेरी कालेज के दिनों की मित्र तारा द्विवेदी का है. मैंने पूरी तरह जाँच-पड़ताल कर ली है. सुजान की वो अपने बच्चे जैसी ही देखभाल करेगी.
“जब मातृत्व ही मतलब परस्त हो तो पितृत्व कर भी क्या सकता है लेकिन एक दिन तुम ज़रूर पछताओगी”. सुधीर ने उसके जवाब से आहत होकर सुविधा के आगे हथियार डाल दिए थे.
अब तो परिस्थिति ही ऐसी बन गई थी कि सुविधा के पास अपनी हार मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उसने सुधीर को अपने आने की सुचना देकर तुरंत इंदौर से मुंबई जाने वाली गाड़ी दूरंतो के तत्काल कोटे में अपना आरक्षण करवाया और मुम्बई पहुँच गई. उस दिन रविवार था तो सुधीर उसे लेने स्टेशन पर आ गया था. सुविधा को गुमसुम और उदास देखकर पूछ लिया-
“क्या बात है सुविधा, कुछ परेशान लग रही हो”? सुजान को अपनी गोद में लेकर प्यार करते हुए सुधीर ने पूछ लिया.
-मैं सचमुच बहुत परेशान हूँ सुधीर, घर चलकर सब बताती हूँ…
घर पहुँचकर सुधीर ने फिर वही सवाल किया तो सुविधा की आँखों से आँसू झरने लगे. उसने बुझे-बुझे शब्दों में सारी बातें विस्तार से बताकर कहा-
-सुधीर प्लीज़ अब मुझे और शर्मिंदा मत करना, मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूँ, मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूँगी…अब हमें इस सिटिंग सेंटर के खिलाफ रिपोर्ट लिखवानी होगी, वहाँ कोई भी बच्चा सुरक्षित नहीं है. तारा ने मेरे साथ विश्वासघात किया है, मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूँगी…
“सुविधा, तुमने शायद कल शाम का और आज का अखबार नहीं पढ़ा होगा, लो पढ़ो, तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ”. कहते हुए सुधीर ने दोनों दिन के अखबार उसके आगे रख दिये और किचन में चला गया.
कल वाले अखबार के मुखपृष्ठ की सुर्ख़ियों पर नज़र पड़ते ही सुविधा के तो जैसे प्राण ही सूख गए, एक सदमे से अभी उभरी भी नहीं थी कि फिर यह झटका…
वो पथराई आँखों से समाचार पढ़ने लगी. लिखा था-
“तारा देवी बेबी सिटिंग सेंटर” की मालकिन तारा देवी के दो वर्षीय पुत्र की देर रात को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु…बच्चे को कल रात “गहन चिकित्सा कक्ष” में भर्ती किया गया था. बच्चे का शव पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया गया है”
सुविधा ने काँपते हाथों से दूसरा अखबार खोला और पढ़ा तो उसकी जैसे साँसें ही थम गईं. लिखा था-
“शिशु की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में उसके रक्त में नशे की दवा पाई गई. तारादेवी का बयान नहीं लिया जा सका. वे बेटे की दर्दनाक मृत्यु का सदमा बर्दाश्त न कर सकने के कारण अपना मानसिक संतुलन खो बैठी हैं. सिटिंग सेंटर पर ताला लगा हुआ देखकर पुलिस ने आसपास के लोगों से जानकारी लेकर तारादेवी की पार्टनर ‘अल्पना रावत’ से उसके घर पर संपर्क किया.
पूछ्ताछ में उसने दुखी मन से बताया-
“परसों दोपहर लगभग एक बजे तारा उसे अपना बच्चा यह कहकर सौंप गई थी कि उसे एक ज़रूरी मीटिंग में जाना है, वहाँ दो तीन घंटे लग सकते हैं, तब तक शिशु को बहलाते रहना है, सुलाना नहीं है. सेंटर के बाक़ी बच्चों को नियमानुसार इस समय सुला दिया जाता है, पर तारा अपने बच्चे को उनके जागने पर ही सुलाती है ताकि वो अपने बच्चे के साथ समय बिता सके. उनके जाते ही मेरे घर से अचानक फोन आ गया कि मेरी सासू माँ पैर फिसलने से अचानक गिर गई हैं, पैर में मोच आ जाने के कारण उन्हें ससुर जी को अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा, अतः बच्चे को सँभालने के लिए शीघ्र घर आ जाओ. मेरी यहाँ भी जवाबदारी थी अतः मैंने अपने बच्चे को यहीं लेकर आना उचित समझा.
उस समय सेंटर में काम करने वाली लड़कियाँ भी भोजन के लिए घर जा चुकी थीं और वहाँ केवल ऊपर के काम सँभालने वाली महिला विमला बाई ही थी, अतः एक घंटे में वापस आने और तब तक शिशु को न सुलाने की हिदायत देकर मैंने बच्चा उसे सौंप दिया. घर से वापस आई तो देखा, बच्चा गहरी नींद सो चुका था. मैंने घबराकर कठोरता से विमला बाई से निर्देश का पालन न करने का कारण पूछा तो उसने बताया-
“क्या करती बीबीजी, बच्चा आपके जाने के बाद एकदम रोने लगा और उसे चुप न होते देखकर मुझे याद आया कि तारा बीबीजी बच्चों को शहद चटाकर सुलाती हैं तो मैंने भी उसे शहद चटाकर सुला दिया”.

फिर जब शिशु सभी बच्चों के जागने के बाद भी नहीं जागा और उसे जगाने की मेरी सारी कोशिश व्यर्थ गई तो तारा को फोन पर सूचित कर दिया. तारा तुरंत मीटिंग छोड़कर आ गई और सेंटर के डॉक्टर को बुला लाई. डॉक्टर ने शिशु की हालत गंभीर बताकर तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा. इसके बाद जो हुआ आप जानते ही हैं”. कहते हुए अल्पना अपने गीले नेत्र पोंछने लगी.

उसके बाद पुलिस ने विमला बाई से संपर्क करके उसका बयान लिया तो उसने भी वही सारी बातें दोहराईं. पुलिस दोनों को लेकर सेंटर पहुँची और अल्पना से सेंटर का ताला खुलवाकर वो शहद की शीशी ज़ब्त करके जाँच के लिए भेज दी.
जाँच की रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया कि शहद में नशे की दवा मिली हुई है. शायद अधिक मात्रा में देने से ही शिशु की जान चली गई. इसके बाद सेंटर को सील कर दिया गया है और पुलिस को तारादेवी के सामान्य स्थिति में आने का इंतजार है, ताकि उसका बयान लिया जा सके”.

सुविधा ने साँस रोककर यह दिल दहला देने वाला समाचार पढ़ा और खोई नज़रों से शून्य में ताकने लगी. सुधीर चाय ले आया था और उसे तसल्ली देकर पीने के लिए कहा.
-यह तो गज़ब हो गया सुधीर, बच्चे का क्या दोष था जो उसके साथ ऐसा हुआ…
“यह तारा को उसके किये की सजा मिली है सुविधा, यह बच्चा किसी का भी हो सकता था, हमारा भी…हाँ शिशु की मौत का मुझे गहरा अफ़सोस है…
आसमान से टूटकर गिरते विलुप्त होते सितारों को देखकर इंसान का मन चाहे द्रवित न भी होता हो, लेकिन इंसानों की गोद में इस तरह दम तोड़ते सितारों के हश्र पर आसमान भी रोता होगा…
अगर फिर भी इस तरह की दुर्घटनाओं से सबक लेकर कामकाजी महिलाओं में जागरूकता नहीं आई तो इस देश के सितारे इसी तरह टूटते, बिखरते और दम तोड़ते रहेंगे”.

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- kalpanasramani@gmail.com