मुक्तक/दोहा

मुक्तक : मरम्मत

सजदे में  ग़र हो सर तो  नेमत अता करे
बुझते  हुए  दिए  की हिफाज़त हवा करे
ईमान बांध  कर चलें जो उसकी राह पर
बिगड़े  मुक़द्दरों  की  मरम्मत  ख़ुदा  करे

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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