कविता

चलो मिलते हैं

चलो न फिर एक बार मिलते है वहॉ
सुनसान जगह हो जहॉ
जब पहली बार मिले थे
तब तो सिर्फ देखते ही रह गये तुम्हे
अब कुछ बात करनी हैं
कुछ तुमसे पुछना हैं
क्योकि तुमसे मिलने वाली जगह को
भूल नही पायीं हूँ
एक बार फिर किसी बहाने
उस स्थान पर जाना चाहती हूँ
जहॉ तुम मिले थे
कुछ पल बिताना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
और उसी जगह
जहॉ दोनो तरफ से
कल कल करती हुई
नदियो के पानी मिलते है
हंस के जोड़े गले लगते है
और वो कमल के फूल
खिल के फैले हुये होते है
आसमान मे पंछियो के झूंड
उड़ते फिरते हैं
हवा के झोके जहॉ मेरे बालो को
उड़ा कर ले जाना चाहते है
पानी की रिमझीम फुहार तो
बिल्कुल मुझे भिंगो ही देना चाहते हैं
और तुम वहॉ एक छतरी बन कर
छुपा लेना चाहते हो मुझे
वही तो याद है सब
समेट कर सभी यादें को
अपने जेहन में सहेजकर रखी हूँ
नही खोना चाहती तुम्हे
इसलिये फिर से मिलना चाहती हूँ
चलो न फिर देर क्यो मिलते है वही।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४