कविता

जीना चाहती हूँ

हॉ मै जीना चाहती हूँ
लेकिन तुम्हारे अधीन रहकर नही
स्वतंत्रत होकर
सभी बंधन से मुक्त होकर
आखिर मेरे लिये ही सभी बंधन बने है
तुम्हारे लिये कुछ नही
तो आज सुन लो
अब से मै भी नही बंधने वाली
किसी बंधन में
हॉ मै नारी हूँ
विभिन्न रूपो मे पायी जाती हूँ
मॉ,बेटी,बहन,बहु न जाने कितने ऐसे रूपो में
और रखती हूँ सबका हमेशा ख्याल
बिना किसी खिंच खिंच और रूसवाईयो के
इतना करने के बाद भी
सभी नियम कानून मुझ पर ही लागू होते है
यहॉ न जाओ वहॉ न जाओ ये न करो वो न करो
मेरा भी अधिकार है स्वाभिमान के साथ जीना
कुछ आस्तित्व है मेरे
कही तुमसे बढकर
तुम भी तो हो
एक पिता ,भाई ,पति , बेटा
तो तुम पर क्यो नही लागू होते सभी नियम
जो मुझ पर लागू हैं।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४