उपन्यास अंश

इंसानियत – एक धर्म ( भाग – एकतालिसवां )

मुनीर को पुकारते हुए ‘ परी ‘ रिक्शे से काफी नीचे की तरफ झुक गयी थी । अपने ही उधेड़बुन में उलझे हुए मुनीर के कानों तक परी की चीख पहुंची थी लेकिन वह यह नहीं समझ सका था कि वह बच्ची उसे ही पुकार रही है और वह भी पापा के संबोधन से । इधर रिक्शा तेजी से उसके सामने से होता हुआ मुनीर से विपरीत दिशा में गुजरा ही था कि उस बच्ची ने एक तेज चीख के साथ रिक्शे से नीचे छलांग लगा दी ।
बच्ची की तेज चीखें व साथ ही रिक्शे के ब्रेक के साथ ही उसके टायरों के घिसटने की आवाज से मुनीर की तंद्रा भंग हुई । बिजली की सी फुर्ती से वह उस बच्ची के पास पहुंचा जो संयोगवश फुटपाथ के पत्थरों से टकराने से बच गयी थी । घुटने पर व हाथों में खरोंच के अलावा अधिक चोट उसे नहीं लगी थी । अपने हाथों व घुटनों के बल उठने का प्रयास करती हूई वह बच्ची बिलख रही थी कि अगले ही पल मुनीर ने झपट कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया । रिक्शेवाला भी अपनी रिक्शा रोककर दौड़ता हुआ मुनीर के पास पहुंच गया व उस बच्ची को मुनीर की गोद से अपने पास लेने की कोशिश करने लगा लेकिन यह क्या ? वह बच्ची तो उसके पास जाने की बजाय मुनीर की गोद में और सिमट गई थी ।
उसकी गोद में आते ही बच्ची का बिलखना कम हो गया और वह उसके गले में बाहें डाल उसके कंधे पर सिर रखकर सुबकने लगी । मुनीर उसे अपने कंधे से चिपकाए इधर उधर सहायता के लिए नजरें दौड़ाने लगा इस उम्मीद में कि नजदीक ही कोई अस्पताल हो जहां शायद इस बच्ची को प्राथमिक उपचार तो मिल जाये । घटनाक्रम बड़ी तेजी से घटा था । मुनीर को कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि तभी उस रिक्शेवाले ने उसे आवाज दी ” अरे भैया ! घबराओ मत ! लगता है बिटिया आपको पहले से ही अच्छी तरह जानती है । बच्ची को गोद में ही लिए रहो । यहीं पास में ही एक अस्पताल है । डॉक्टर साहब बहुत अच्छे इंसान हैं और मुझे जानते भी हैं । परी बिटिया तुम्हारे बिना वहां नहीं जाएगी इसीलिए तुमसे विनती है कि तुम भी हमारे साथ चले चलो । देखो बिटिया को कितनी चोट लगी है । ”
कुछ और तमाशबीन भी वहां जमा हो गए थे । एक दूसरे से कानाफूसी का दौर शुरू हो गया । ‘ क्या हुआ , क्या हुआ ‘ का मध्यम शोर भी शुरू हो गया । उनमें से ही कोई किसी को घटना का आंखों देखा हाल सुनाने लगता तो कोई वहीं खड़े खड़े मुनीर को कुछ बताने की कोशिश करता । लेकिन भीड़ व अस्पष्ट आवाजों की वजह से मुनीर कुछ समझ भी नहीं पाया था कि तभी वहां एक नेता टाइप व्यक्ति का आगमन हुआ । आते ही असमंजस में खड़े मुनीर को देखते हुए हल्की सी लताड़ लगाई ” अरे अब तुझे क्या हुआ ? खड़ा क्यों है ? ले जा बच्ची को अस्पताल ! ”
शायद उसे किसी ने घटना के बारे में पहले ही बता दिया था । लेकिन तभी जैसे मुनीर को देखकर उसे कुछ शक सा हुआ हो । अचानक बोल पड़ा ” लेकिन ये बच्ची है किसकी ? ” और फिर मुनीर को देखते हुए बोला ” और तू है कौन ? ”
अब रिक्शेवाला आगे आया और उसे सलाम करता हुआ उससे बोला ” साहब ! यह बच्ची कर्नल राणा की विधवा बहू नंदिनी की बेटी ‘ परी ‘ है । मैं ही इसे अपनी रिक्शा में स्कूल ले जाता हूँ और ले आता हूँ । आप तो जानते ही हैं अब कर्नल साहब भी नहीं रहे । ”
वह व्यक्ति बोला ” वो तो ठीक है । कर्नल साहब को कौन नहीं जानता ? लेकिन ये बच्ची गिरी कैसे रिक्शे में से ? लगता है सब तेरी ही गलती है । ”
इतना सुनते ही रिक्शेवाला डर गया । गिड़गिड़ाते हुए उस आदमी के पैरों में हाथ लगाते हुए बोला ” कसम खाकर कहता हूं साहब ! मेरी कोई गलती नहीं बल्कि मैं तो कहूँ किसी की कोई गलती नहीं है । रोज की तरह मैं बिटिया को रिक्शे में बैठाकर रिक्शा चला रहा था कि अचानक बिटिया की किसी को पापा कहकर पुकारने की तेज चीख सुनाई पड़ी । अभी मैं पीछे मुड़कर कुछ देखता और समझता कि उससे पहले ही इस बच्ची ने चलती रिक्शे से नीचे छलांग लगा दिया । वो तो भगवान की बड़ी किरपा है कि आज हम सबसे पीछे पहुंचे थे और हमारी रिक्शा के पीछे दूसरी कोई सवारी नहीं थी । अगर बिटिया को कुछ हो जाता तो हम मालकिन को क्या मुंह दिखाते ? …..”
तभी भीड़ में से कोई चीखा ” अबे रहने दे ! अब ज्यादा सफाई मत दे ! ले जा बच्ची को पहले अस्पताल और आगे से ध्यान रखियो बच्ची का । ये तेरी जिम्मेदारी है । समझा ? ”
अभी रिक्शेवाला कुछ कहता कि तभी वह नेता सरीखा आदमी बोला ” चल ठीक है पहले इलाज करा लेते हैं इस बच्ची का । इसे चोट लगी है , इसलिए इलाज जरूरी है बाद में हम तुम दोनों को देखेंगे कि असल में बात क्या है ? ”
रिक्शेवाला घबरा गया ” नहीं साहब ! बात तो कुछ भी नहीं है । ”
वह नेता मुस्कुराया ” अबे ! तू क्यों डर रहा है ? मुझे तो थोडा दाल में काला नजर आ रहा है उसी बाबत तुझसे पूछताछ करनी पड़ेगी । तू जो भी जानता होगा बता देना सही सही । बस ! तुझे कुछ नहीं होगा , यह हमारी जिम्मेदारी होगी । समझ गया ? अब चल ! ”

बड़ी देर से गुमसुम सा मुनीर बिना कुछ कहे खामोशी से सबकी बातें ध्यान से सुन रहा था । उसे उस बच्ची से हमदर्दी हो गयी थी जो इतना चोट लगने के बावजूद बड़े प्रेम से उसके गले में बाहें डाले उसके कंधे से चिपकी हुई थी । उसे उनमें से किसी की बात समझ में नहीं आ रही थी और न ही उसका ध्यान उनकी बातों की तरफ था । वह बच्ची को गोद में लिए हुए ही रिक्शे में जाकर बैठ गया था । रिक्शे पर बैठने के दौरान मुनीर ने पल भर के लिए अपने कंधे से उस बच्ची को हटाया ही था कि वह फिर से चीखने लगी थी लेकिन अगले ही पल जैसे ही उसने बैठकर उसे अपनी गोद में लिया वह और अधिक उसके सीने में सिमटने सी लगी । कुछ ही पलों में वह संयत हो गयी और उसके कंधे से सरक कर उसकी गोद में बैठते हुए बोली ” पापा ! आप मेरे पापा हो न ? ”
उस अनजान बच्ची के मुख से अपने लिए ‘ पापा ‘ का सम्बोधन मुनीर को बेतरह चौंका गया । वह यह पहेली अभी समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी बच्ची फिर से बोल पड़ी ” मुझे पता है कि आप मम्मा से नाराज हो । इसलिए आप हमसे भी नहीं बात कर रहे हो । पापा ! आप मम्मा से क्यों नाराज हो ? मम्मा की तरफ से हम आपको sorry बोलते हैं । sorry ”
एक पल को मुनीर ने सोचा कि अभी उसे सब कुछ सही सही बता दे लेकिन तभी उसे ख्याल आया कि अभी उसे इलाज की जरूरत है और अगर उसने उसकी बात से इंकार किया तो वह फिर से रोने लगेगी और उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा । पहले उसका इलाज हो जाय फिर सच्चाई तो उसके सामने आएगी ही । अतः प्यार से उसके गालों को थपथपाते हुए बोला ” नहीं बेटा ! हम आपसे नाराज नहीं हैं और न ही आपकी मम्मा से नाराज हैं । देखो ! आप हमारी गोद में हो । अगर हम नाराज होते तो आप हमारी गोद में होतीं क्या ? ”
” नहीं ! ” कहते हुए परी और उसकी गोद में सिमट गई और धीरे से बोली ” अब हमें छोड़ कर नहीं जाओगे न ? ”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “इंसानियत – एक धर्म ( भाग – एकतालिसवां )

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, हमेशा की तरह यह कड़ी भी बहुत सुंदर, रोचक व सटीक लगी, सच है-
    कभी-कभी अजनबियों की दयालुता भी,
    विश्वसनीय होती है.
    कहानी की एक-एक बारीकी पर नज़र रखते हुए भाषा-वैविध्य से इस कड़ी में रोचकता आ गई है. यथार्थ के दर्शन तो आपकी रचनाओं की विशेषता है ही. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद ।

  • विजय कुमार सिंघल

    यह क्या पहेली है? कोई बच्ची किसी अनजान आदमी को पापा क्यों कहेगी? कहानी रोचक है।

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब ! फिलहाल तो यह पहेली ही है जिसकी परतें अगले एक दो किश्तों में खुलेंगी । उत्शाहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।

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