लघुकथा

समाज के कोढ़ (2)

ज्यों ज्यों लघुकथा सम्मेलन का दिन करीब आता जा रहा है , त्यों त्यों एक नई लघुकथा जन्म ले रही है

एक महोदय ने आयोजनकर्त्ताओं में से किसी एक को फोन किया

-हैलो!”
-मैं xyz बोल रहा हूँ।”
-जी पहचान रहा हूँ बोला जाए कैसे हैं?”
-मैं तो ठीक हूँ… सुनिए न ! लघुकथा सम्मेलन में सम्मान देने की भी बात होगी ?”
-जी बिल्कुल होगी”
-लिस्ट तैयार हो गया क्या?”
-हाँ ! हाँ… लिस्ट बिलकुल तैयार है”
-आप बता सकते हैं क्या कि उस लिस्ट में मेरा नाम है कि नहीं?”
-क्या गज़ब की बात करते हैं!? आपने लघुकथा कब लिखी!? मेरी जानकारी में तो आप अबतक एक भी लघुकथा लिखने का प्रयास भी नहीं किये हैं…”
-उससे क्या होता है… आपलोगों से सवाल करने कौन आएगा…”
-हमारा ज़मीर…”
-अजी समय से लाभ उठाना चाहिए… जितना खर्च करने के लिए बोलिये , मैं तैयार हूँ…”
-लानत है जी ऐसे पैसों पर… पैसों से लेखन करवाये 2000 लोग भी जमा हो तो उसमें आपका नाम नहीं आएगा”
-आप भी कैसी बात कर रहे हैं…. सरकारी सम्मान पाए लोगों में भी हमारे जैसे लोग आराम से मिलेंगे…”

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “समाज के कोढ़ (2)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हमारे देश में यह कोई नई बात नहीं है लेकिन अभी बीज नाश नहीं हुआ .अभी भी कुछ लोग हैं जो इन XYZ पर थूकते भी नहीं .

  • विजय कुमार सिंघल

    करारी बात ! आपने पैसे देकर सम्मानित होने वालों की खूब पोल खोली है.

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