गीतिका/ग़ज़ल

तुम_लिखो

आँख को जाम लिखो ज़ुल्फ को बरसात लिखो,
जिस से नाराज हो उस शख़्स की हर बात लिखो,

जिस से मिलकर भी न मिलने की कसक बाकी है,
उसी अंजान शहंशाह की मुलाकात लिखो,

जिस्म मस्जिद की तरह आँखे नमाज़ों जैसी,
जब गुनाहों में इबादत थी वो दिन रात लिखो,

इस कहानी का तो अंजाम वही है जो था,
तुम जो चाहो तो मोहब्बत की शुरुवात लिखो,

जब भी देखो उसे अपनी नजर से देखो,
कोई कुछ भी कहे तुम अपने ख़यालात लिखो..!!

राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com