लघुकथा

बेरोज़गार_आशिक़_

कल रात देर तक जागा था तो सुबह औंधी आँखों से एक ख़ूबसूरत सपना देखे! देखे की, आप हमको जगा रही हो! “उठिए भी! कितना सोते हो?” और हम जानबूझ कर सोने की ऐक्टिंग कर रहे हैं!

लीजिए, पंखा भी बन्द कर दिया आपने! पेट के बल लेटे हुए, आधी अधूरी चादर लपेटे अपनी बायीं आँख चोरी से खोलकर देखे तो आप पीली कुर्ती में सामने खड़ी हो!
और हमारी इस हरकत को देखकर आपके होंठ थोड़े हिल से गए! शायद पकड़ लिया उन्होंने हमारी ये हरकत! पीली बिन्दी, शंकर भगवान वाला जूड़ा और बड़े बड़े झूमके! हाय! और उसपर आपके सिंपल से काजल की एक लेयर! यक़ीन मानिए कभी कभी सोते सोते मरने को भी जी चाहता है!

आपने चादर खींच ली हमारी और हमने झट से तकिया अपने सर पर डाल लिया ताकि आप और परेशान हो सको! आपको इरिटेट करना हमारा फ़ेवरेट टास्क है! पता है जब आप इर्रिटेट होती हो न तो सवालों के ढेर खड़े देती हो! जवाब हमारे पास हो न हो पर आपके मुँह से निकले सवाल लाजवाब होते हैं! सुनने में अच्छा लगता है!

आपने हमारा पैर पकड़ के खींचने की कोशिस कि और हमने फिर से उसे सिकोड़ लिया! अब आप और भी झल्ला रही हैं! मुस्कुरा रही हैं!
“नही उठेंगे तो चले जाएँगे हम ”राज I”..बोल के डरा रहीं हैं अब। “हम सच-मुच जा रहे हैं!” कहा आपने और धड़कन ही बढ़ गयी हमारी!
“आहो! मत उठिए, bye!” और जैसे ये बोला आपने, झट से उठा गये हम!

देखा तो चादर लिपटी थी हमारे ऊपर, तकिया अपनी जगह थी! और पंखा चल रहा था! एक मुस्कुराहट थी और एक अफ़सोस! मुस्कुराहट इस बात की के आप सपने में आयी और अफ़सोस इस बात का के वो बस एक सपना था!

राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com