कविता

उपरवाला

बहुत ढूंढा है मैंने ऊपर वाले को
यहां पर
मगर रास्ता उसका खुद के अंदर ही है
घिरा रहता हूं हर वक्त रिश्ते-नातों से जहां भी देखता हूं
आंखें मुंदी तो पता चला
अंतिम क्षण में केवल मैं हूं
और वह मैं अनंत में विलीन होना चाहता है
यही सच्चाई है यही मोक्ष है
जो कुछ है जो कुछ देख रहा हूं
जो कुछ छूकर एहसास कर रहा हूं
सब भ्रम है सच्चाई
एकमात्र मैं और मैं
का आनंद में विलीन हो जाना
वह आरंभ है वही अंत है
वही उजाला है वही अंधेरा है
अपना पराया छोटा बड़ा
आकाश-पाताल सब वह है
वह अनंत वह सर्वश्रेष्ठ
मेरा भी उस में विलीन होना
एक बिंदु मात्र
वह कहीं नहीं रहता
वो है अंदर
सम्वेदनाओं से घिरा हुआ

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733