कहानी

दहेज-भोजपुरी कहानी

रामअसरे, काल तिलका पर 25 अदमी अइहंऽ। आज बजार में तिरलोकी मिलल रहलन ह। कहुअन कि रामअसरे से कह दिह 25 आदमी क व्यवस्था बना लिहन। चाचा, ठीक बा। लेकिन हम त खाली दस-बारह आदमी मंगले रहली हं। अच्छा कवनो बात नइखे। बाबूजी के देहांत के बाद घर-परिवार क सारा भार रामाश्रय पर पड़ गइल औरी उह भी आपन जिम्मेवारी बहुत सुंदर से संभाल लेहलन। आज उनके माझिल भाई क तिलक ह। घर में सब लोग आपन-आपन काम में व्यस्त बा। तभी उनकर छोटका भाई मोबाइल लेले दौड़ल आइल। भैया! फोन ल त्रिलोकी मामा लाइन पर बान हैलो मामा, कइसन खबर बा.. सब ठीक बा न, अच्छा तिलक ले के क बजे ले पहुंच जइब जा? हैलो, रामअसरे! सब ठीक बा हमनी क सांझ के सात बजे ले पहुंच जाइब जा। कुल तीस आदमी ले होइहं व्यवस्था टंच रखिह। का, कहल, तिलका पर तीस आदमी अइहं, तोहार दिमाग त खराब नइखे न भइल। छोड़ तोहन लोग के अइला क कवनो जरूरत नइखे। तिलक ना चढ़ी, बियाह ना होई। हम फोन रखत बानी। मुहम्मदाबाद के पास तमलपुरा गांव क घूरा की लइकी से रामाश्रय के माझिल भाई क बियाह तय करवावे में त्रिलोकी अगुवा हउअन। त्रिलोकी रामाश्रय क दूर क मामा लगिहन। फोन पर रामाश्रय क बात सुन त्रिलोकी के लागल कि केहू बियाह काटे क कोशिश कर रहल बा। इह खातिर उह लइकी के भाई के लेके मोटरसाइकिल से रामाश्रय के दुआर पर पहुंच गइलन। भैया दुआर पर त्रिलोकी मामा आइल बान। तोहके बुलावत बान। ठीक बा, तू मीठा-पानी ले के आव। हम जातानी। रामाश्रय दुआर पर आ के त्रिलोकी के प्रणाम कइलन। मामा प्रणाम। खुश रह। का बात बा तू टेलीफोन पर एतना नाराज होके काहे बोलत रहल हउअ। हमसे कवनो गलती हो गइल बा..। हूं। हम तोहसे हाथ जोड़के विनती कइले रहलीं कि तिलक पर दस-बारह आदमी ले अइह। कम अदमी रहिअन त सेवा-सत्कार बढ़िया से हो पाई। अदमी ढेर रहला से कई तरह के परेशानी होला। पर तू काल संदेश भेजवइल कि 25 अदमी अइहन आ आज कहत बाड़ तीस। एके बार कहले रहत त हम ओकर व्यवस्था कइले रहतीं। अब अचानक आदमी बढ़ गइला से परेशानी हो सकेला। बस एतने बात बा। ठीक बा। हम पांच अदमी लेके आइब। नाही। अब तू तीस से कम अदमी लेके मत अइह। नहीं त तोहरा गांव के लोग कही कि लइका वाला कइसन दलिदर बान स, तीस अदमी के खिआवे क भी हैसियत नइखे। बस एक बात याद रखिह, हम बात से पलटे वाला अदमी के पसंद ना करिला। तोहके एतने समझावे खातिर इह सब स्वांग रचल गइल रहल ह। रामाश्रय क खरी-खोटी सुनके त्रिलोकी के भीतर जइसे आग लग गइल। उह एके आपन बेइजती समझलन। इह भाव उनकरा चेहरा पर साफ झलके लागल। उनकर चेहरा देखके रामाश्रय के भी कुछ आभास हो गइल। इह देखके रामाश्रय त्रिलोकी के चेतवलन। मामा, का सोचत बाड़। एगो बात ध्यान से गांठ बांध लिह। कवनों पेंच खेले के मत सोचिह, नाहीं त महंगा पड़ जाई। हम से पार ना पइब। अब जा जल्दी से तिलकहरू लोगन के लियाके आव। त्रिलोकी के इह चेतावनी आपन अपमान मालूम भइल। अपमान के इह घूंट पीके उह अपना घर पहुंचलनत उनकर मेहरारू त्रिलोकी क उखड़ल मिजाज देखके पूछलीं। ए जी, का भइल? बियाह में कवनो बाधा नइखे न? बियाह तो होई, लेकिन हमके रामअसरे क शान हेठ करेके पड़ी। असाम से आइल बाड़न त समझत बान कि गांव के लोग गंवार होला। उनके बता देइब कि बियाह कइसे होला। एन्हे किरण डूबला के बाद रामाश्रय क मकान रोशनी के झिलमिलाए लागल। दुआर पर हलवाई पकवान बना रहल बा। रामाश्रय सब तैयारी क जायजा ले रहल बान। कहीं चूक हो गइल त बेइज्जती हो जाई। हलवाई काका, सब ठीक बा न? का-का बन गइल बा? का बाकी बा? बबुआ, सबकुछ हो गइल बा। अब पुड़ी छान लेहल जाइ त तू गांव वालन के बुला के खिला सकेल। हअ। हमहूं इहे सोचत बानी। गांव वाला खा लिहनत ठीक रही। तिलकहरू लोगन के अइला के बाद सब लोग उनके में ही व्यस्त हो जाई। टेंट वाला भइया, तोहन लोग आपन चननी-मननी बांध क ठीक कर ल जा। तिकहरू लोग आवते होइहन जा। एही बीच जोर से आन्ही-पानी आ गइल। बिजली कड़के लागल, इंद्रदेव बरीसे लगलन। लेकिन तनके में इंद्रदेव मान गइलन, अउरी फिर से सबकुछ ठीक हो गइल। बरसात बंद भइला के साथ तिलकहरू दुआर पर पहुंच गइल लोग। रामाश्रय आगे बढ़कर सबकर बड़ा ही गर्मजोशी से स्वागत कइलन। आईं सभे। आप सबकर स्वागत बा। त्रिलोकी मामा कांहे पीछे बाड़। अगुवा हउअ आगे रह। ना हम ठीक बानी। मामा लागत बा, अदमी कुछ ढेर बान। कुल केतना आदमी होइहन। का करब। हित-नात ढेर हो गइलन हन। कम करत-करत कुल 45-47 अदमी हो गइल हन। ठीक बा। तू जेवन चाहत रहल ह, उ करे के पूरा इंतजाम कर के आइल बाड़। अच्छा भगवान बान। एगो त ऐन वक्त पर आंधी-तूफान आ गइला से तइयारी में कुछ बाधा पड़ गइल। ऊपर से तिलकहरू लोगन क संख्या अनुमान से ढेर होइला के कारण रामाश्रय तनिक चिंतित हो गइलन। नाश्ता के 35 गो पाकिट तैयार कइल गइल रहे। तिलकहरू लोगन के संगे गांव क भी कुछ लोग बइठ गइल रहे। यदि एइसन में तिलकहरू लोगन के पानी पिआवल जाव। रामाश्रय क चिंता के उनकर मित्र सुरेंद्र समझ गइलन। ए सब मामला में सुरेंद्र क दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलेला। का बात बा रामाश्रय? काहें परेशान बा़ड़? का बताईं? दुआर पर तिलकहरू बइठल बान। नाश्ता-पानी करावे के बा। हम त 30 अदमी खातिर 35गो ले नाश्ता क पाकिट तइयार करअवले बानी। तिलकहरू लोग 50 जने होइहन जा। का करिं समझ में नइखे आवत? अच्छा बताव पाकिट में क-क पीस मिठाई बा। चार किसिम क मिठाई अउरी नमकीन बा। तब का चिंता कइले बाड़? हर पाकिट से दू-दूगो मिठाई निकाल के अउरी तीस-पैंतीस गो पाकिट बना ल। सुरेंद्र गांव क लइकन के ले के फटाफट पाकिट तइयार कइलन अउरी तिलकहरू लोगन के पानी पिआवल गइल। एकरा बाद तिलक चढ़ल। सबेरे सब मेहमान के विदा कर रामाश्रय तनिक राहत महसूस कइलन। भाई क बियाह ह, कहीं तनको खोट रह जाई त कहे वाला बहुत मुंह हो जाई। त्रिलोकी क एगो दाव त रात क खाली चल गइल, लेकिन दूसरा दाव काम कर गइल। मेहमान लोगन क विदाई कर रामाश्रय घर में आकर तिलक पर मिलल समान देखे लगलन त उनकर एड़ी पर क खून कपार पर चढ़ गइल। दू किलो लड्डू, एक किलो लीची, एक दर्जन केरा, एक पाव अंगूर अउरी चार-पांच गो छोट-छोट अनारदेख के रामाश्रय के त्रिलोकी क चाल समझ में आ गइल। तिलका पर चढ़ल फल-मिठाई गांव में बांटल जाला, जेके पाहूर कहल जाला। पाहूर के प्रतिष्ठा से जोड़के भी देखल जाला। पाहूर निमन अउरी अधिक होइला पर बांटे वाला क प्रतिष्ठा बढ़ जाला। त्रिलोकी तिलका पर फल अउरी मिठाई कम ले आकर रामाश्रय के प्रतिष्ठा पर ही प्रहार करे क कोशिश कइले रहलन। अपना स्वर्गवासी बाबूजी क आदर्श मानके रामाश्रय बियाह में दहेज क कवनो मांग ना कइले रहलन। शादी बिना दहेज के तय भइल रहे। एही खातिर तिलक पर जेवन कुछ मिलल स्वीकार कर लेहलन। लेकिन त्रिलोकी क इज्जत बिगाड़े वाला घिनौना खेल रामाश्रय से बर्दाश्त ना भइल। खीस में तुरंत त्रिलोकी के मोबाइल पर फोन कइलन। हेलो, त्रिलोकी मामा। घरे पहुंच गइल? हेलो, के रामअसरे? हं, अभी-अभी पहुंचली हं। का बात बा? काहे फोन कइल ह? मामा हम तोहके चेतवले रहलीं कि पेंच मत खेलिह। लेकिन तू ना मनल। पहिले त तिलका पर 47 अदमी ले आके हमार इज्जत बिगाड़े क कोशिश कइल। एकरा बाद तिलका पर एतना कम फल-मिठाई। लइकी वाला त एतना गरीब नइखे कि इज्जत ढांपे भर फल-मिठाई ना दे सकेला। तूहीं बतवले रहल, उ लोग के मुहम्मदाबाद जइसन बाजार में तीन बिगहा जमीन बा, दुकान बा, पक्का मकान बा, दू-दू गो सरकारी पेंशन बा। हम त देहज भी नइखी मंगले। बस हमार इज्जत खराब करे खातिर तू इ पेंच खेलल ह। त ठीक बा। काल तोहार बारी रहे, आज हमार पारी आइल बा। दांव सम्हारे खातिर तइयार बाड़ न। हं, हो तइयार बा़नी। बोल का कहत बाड़? का करब? मामा, हम दहेज क खिलाफ रहली हं, लेकिन हमके लागत बा कि इ हमार गलती रहे। यदि हमहूं ढेर सारा दहेज मंगले रहतीं त तोहार अउरी लेइकी वाला क हमरा संगे एइसन बर्ताव करे क हिम्मत ना पड़ित। तोहरा नजर में दहेज मांगे वाला ही बड़ अउरी प्रतिष्ठा वाला होला त, अब हमहू के दहेज चाही। तिलक त चढ़ गइल। छह जून के बियाह बा, अउरी आज एक तारीख ह। हमके पांच तारीख तक अउरी चालीस हजार रुपया मिली, तबे बारात छह के तमलपुरा जाई। ना त बारात कवनो दूसर दिशा की ओर जाई। घूरा के बता द, यदि एतना पइसा ना देवे सकिहन त तिलक वापस ले जां। रामअसरे, तू इ का कहत बाड़। तोहके दहेज चाहत रहे ते पहिले कहले रहत। बियाह तय भइला क डेढ़ साल बाद तू आज अचानक दहेज मांगत बाड़। इ ठीक नइखे। मामा, इ त तोहरा पेंच क पहिला जवाब ह। अभी त पूरा खेल बाकी बा। पहिले दांव पर मिमियाए लगल। अचानक दहेज क मांग से घूरा पर जइसे बिजली गिर गइल। हालांकि इ रकम घूरा खातिर कवनो ढेर नइखे, पर संयुक्त परिवार क कईगो मजबूरी होला। खैर समस्या क कवनो समाधान निकाले खातिर घूरा कुछ लोग के लेके रामाश्रय के यहां पहुंच गइलन। रामाश्रय दुआर पर आइल मेहमान लोगन के बड़ा आदर से बइठवलन। घर के भीतर से मिठा-पानी आइल। भाई साहब, पानी पिहीं। त्रिलोकी मामा तू हूं ल। कइसे पानी पिहीं। तहार मांग सुनके त कुछु नीचे नइखे उतरत। काल से हमनी क परेशान बानी जा। तू काहे के हमनी के परेशान करत बाड़? काहें, मामा? तोहके खाली हमार गलती लउकत बा। तू हमरा संगे का कइल, उहो देख। त्रिलोकी अउरी रामाश्रय के बात के बीच में ही काट के घूरा के संगे आइल एगो नेता टाइप सज्जन कहलन। बेकार क बातछोड़ लोग। मूल मुद्दा पर बात कर जा। रामाश्रय जी आपके कहनाम बा कि घूरा चालीस हजार रुपया दें, नाहीं त तिलका के समान वापस ले जां। हं, बिल्कुल। लेकिन घूरा क रुपया देवे क संवढ़ नइखे। त आपन समान ले जांस। इ कहके रामाश्रय घर के भीतर गइलन अउरी सारी सामान बाहर निकाल देहलन। एकरा अलावा नगद चौदह हजार पचास रुपया लौटा देहलन। आप लोग तिलका पर नगद बारह हजार पचास रुपया अउरी छेंका पर एकहजार रुपया देलें रहलीं। हम एहमें अउरी एक हजार रुपया मिलाके लौटावत बानी। लइका के गोर लगाई चाहे अउरी कई जगह आप लोग के खर्चा भइल होई। हम आप लोग क कुछ भी राखल नइखीं चाहत। घूरा के संग आइल एक दूसर सज्जन रामाश्रय के हाथ से रुपया लेके गिनलन अउरी ओ मे से पांच हजार रुपया रामाश्रय के वापस कर देहलन। इ पांच हजार रुपया आप तिलक क खर्च मानके राखीं। हमनी क भी केहुक धन मुफ्त में ना खालिंजा। एकरा बाद लइकी वाला लोग तिलक क समान ले के चल गइल। रामाश्रय निराश होके उह लोग के घमंड से जात देखत रहलन। रामाश्रय कभी ना चाहत रहलन कि डेढ़ साल से तय रिश्ता एतना छोट बात के खातिर टूट जाए, पर होनी के कुछ और मंजूर रहल। असल में घूरा जेके आपन हितैषी समझ के ले आइल रहलन, उहे लोग उनकरा खातिर दुश्मन साबित भइलन। जे बनावे आइल रहल, उहे बिगाड़ के चल गइल। उ लोग के गइला के बाद रामाश्रय के घर के लोग इह बात के लेके परेशान हो गइलन कि अब का होई? बियाह क सब तइयारी हो गइल बा। केतना नुकसान होई, ऊपर से जगहंसाई अलग। तभी रामाश्रय के अपना छोटका चाचा रवींदर क बात याद आइल। चाचा, तू बतावत रहल कि सिदउत क रामपुकार अपनी साली क रिश्ता लेके एक बार आइल रहलन। का उनकर साली क बियाह हो गइल? ना, अभी नइखे भइल। एक बार उनके बोलाव त। जदि बात बन गइल त एही लगन पर बियाह हो जाई। ठीक बा, हम उनके फोन करत बानी। रवींदर के बुलावा पर रामपुकार अइलन अउरी एह मुद्दा पर चर्चा भइल। एकरा बाद लइकी देखे अउरी लइकी क बाबूजी से बात करे क फैसला लिहल गइल। बिना देर कइले रामपुकार क मोटरसाइकिल पर तीनों जने लइकी के घर पहुंच गइल लोग। वहां रिश्ता तय हो गइल अउरी 6 जून के ही बियाह क दिन धर देहल गइल। एह काम खातिर कवनों पंडित क जरूरत ना पड़ल। उधर, तिलक वापस भइला के बाद जेइसे लड़की के परिवार पर पहाड़ टूट गइल। केहू के कुछ समझ में ना आवत रहे कि का कइल जा। तिलक क समान वापस ले जाके उह लोग जेवन गलती कइले रहल, ओकर एहसास भइला के बाद बिगड़ल बात बनावे के खातिर त्रिलोकी एगो प्रयास कइलन। उह रामाश्रय के फोन करके उनकर मांग क अनुसार चालीस हजार रुपया देवे क बात कहलन। का कहल मामा? अब चालीस हजार रुपया देवे के तइयार बाड़जा। लेकिन अब बहुत देर हो गइल बा। हम दूसरा जगह बियाह तय कर देले बानी। अब त पांच लाख रुपया देहला से भी बात ना बनी। तू त जानत बाड़ इ रिश्ता रुपया खतिर ना टूटल ह, बल्कि एकरा खातिर पूरा तरह से तू जिम्मेवार बाड़। एक ओर रामाश्रय के घर पर बियाह क मंगल गीत गावल जा रहल बा त दूसरी ओर घूरा के घरे सन्नाटा पड़ल बा। तत्काल दूसर लइका खोज के लइकी क हाथ पीयर कइल आसान ना नजर आवत रहे। अब आगे का कइल जा, एह पर राय-मशविरा करे खातिर घूरा क हित-नात व गांव-घर के लोग उनके दुआर पर बइठक कइलन। केहू दूसरा जगह लइका देखके बियाह करे क सलाह देहल त केहू लइका वाला पर दहेज क मामला बना के थाना-फौजदारी करे पर जोर देत रहे। अंत में एक बार फिर रामाश्रय के यहां जाके बात-चीत करे क फैसला कइल गइल। एकरा बाद त्रिलोकी क्षेत्र क कुछ जानल-मानल लोगन के लेके रामाश्रय के यहां पहुंचलन। लेकिन अब त सुलह के कवनो गुंजाइश ही ना रह गइल रहे। बात ना बनल। घूरा के अंगना में जहां मंगल गीत गूंजे के चाहत रहे, उहां मातम पसरल बा। केहू लइका वालन के कोस रहल बा त केहू लइकी क किस्मत पर लोर बहा रहल बा। दूसरा ओर रामाश्रय क भाई क बियाह हो गइल अउरी कनिया घरे आ गइल बिया। सब केहु नाचत-गावत बा। लेकिन रामाश्रय एकोरा बइठ के कवनो सोच में पड़ल रहुअन कि एगो मेहरारु के अइला क आवाज से उनकर तंद्रा भंग भइल। का बबुआ इहां एकोरा का बइठल बाड़। भाई क बियाह क बधाई हो। तू पहिलका बियाह कटला के बाद ओही लगन पर दूसरा जगह बियाह करके आपन शान रख लेहल। एसे तोहार इज्जत अउरी बढ़ गइल बा। सगरे गांव में तोहरे चर्चा हो रहल बा। धन्यवाद काकी। लेकिन इह सब त भगवान क मर्जी रहल ह। लेकिन आज फिर दहेज दानव जीत गइल। दहेज के खातिर आज एगो अउरी बेटी के बाप के दुआर पर बरात ना गइल। ना जाने कब समाज के इह दानव से मुक्ति मिली। रामाश्रय के मुंह से निकलल इ बात सुन के काकी के आंख से लोर गिरे लागल काहें कि दहेज क रकम पूरा ना देवे सकला के कारण ही एक दिन उनकरी बेटी क बरात दुआर पर से वापस चल गइल रहे। ————राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com