कविता

राह

राह कैसी भी हो
मगर रूकना नहीं
करना ना तू चाटुकारिता
तुम कहीं झुकना नहीं
अकार को प्राप्त कर, विकार को छोड़ दे
जो रास्ते हो प्रलय के उनको अब तू मोड़ दे
तेरा यह कर्तव्य पथ पर तुम्हें दौड़ाएगा
क्षितिज पर रखना आंखें अपनी
मुसीबतों का पहाड़ भी आएगा

दिखाएंगे सहानुभूतियाँ तुम्हें तोड़ने के लिए
सखे जान लगा ही दे सब कुछ जोड़ने के लिए
लोभ लालच का सर्प तुझ में जहर घोलेगा
तुम्हें हड़पने के लिए ये काल भी मुंह खोलेगा
वह दयानिधि तुम्हारे साथ है
न जाने कितने रास्ते अवरुद्ध हैं
हाथ में तलवार उठाओ वीर
ये याद रख यह युद्ध तुम्हारा खुद से है

भ्रम की पराकाष्ठा
न जाने कितनों का साथ है
एक आखिर सच बचा
वो केवल राख है
वो केवल राख है
तुम्हें लूट कर ले जाने को
पास बैठे हैं कई
तुम्हें अपना बताने को
आत्मज्योति से बड़ा
विश्व में कोई दीप नहीं
आंखें बंद कर सोच ले
मृत्युशैया पर कोई तेरे समीप नहीं

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733